गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

हिमालय की संवदेनशीलता से प्रभावित होगी पूरी दुनिया


हिमालय की संवदेनशीलता से प्रभावित होगी पूरी दुनिया
देहरादून 22 अक्टूबर। हिमालय की संवदेनशीलता पूरी दुनिया को प्रभावित करती है, क्योंकि हिमालय पर्यावरण संतुलन, जल संसाधन तथा देश की सुरक्षा का प्रहरी है तथा भूकम्प की दृष्टि से संवदेनशील होने के कारण इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सबकी है। यह बात मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने वाडिया इंस्टिट्यूट में भूकम्प का पूर्वानुमान पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कही। डा. निशंक ने कहा कि हिमालय की संवेदनशीलता प्रदेश से ही नहीं पूरे विश्व को प्रभावित करती है। इसलिए इसकी सुरक्षा विश्व समुदाय की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि भूकम्प के कारण जनहानि के साथ-साथ अन्य क्षतियां भी होती हैं तथा प्रकृति के असंतुलन से दैवीय आपदाएं जन्म लेती हैं। उन्होंने कार्यशाला में प्रतिभागी वैज्ञानिकों से अपील की, कि इस कार्यशाला में प्रकृति से आत्मीयता एवं उसके वैज्ञानिक दोहन पर गम्भीरता से मंथन किया जाय। उन्होंने कहा कि मंथन में आये बहुमूल्य विचारों को राज्य सरकार अपने नियोजन में शामिल करेगी। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने कहा कि भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता को अधिक महत्व दिया गया है तथा प्रकृति द्वारा प्रदत्त नैसर्गिक सौंदर्यता ने देश ही नहीं अपितु विदेशियों को भी प्रदेश की ओर आकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में प्रकृति से प्रेम की परम्परा रही है, और यही कारण है कि यहां के विभिन्न त्योहार, पेड़-पौधों, फसल तथा पशुओं की पूजा से जुड़े हुए हैं। वृक्षारोपण, गौ-पूजा जैंसी हमारी परम्परायें प्रकृति के संतुलन के लिए बहुमूल्य है किन्तु आधुनिकता की दौड़ में इन परम्पराओं को लोग नहीं अपना रहे हैं, जिससे भूस्खलन, बादल फटने जैसी अनेक दैवीय आपदायें जन्म लें रही हैं। उन्हांेने कहा है कि अच्छी परम्पराओं का वैज्ञानिक ढंग से प्रचार प्रसार कर प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है, उन्होंने इसके लिए वैज्ञानिकों का आह्वान किया। उन्होंने वैज्ञानिकों को सम्बोधित करते हुए विकास की धुरी बनकर प्रदेश एवं देश के चहुॅमुखी विकास में आगे आयें। उन्होंने वैज्ञानिकों का अभिनन्दन करते हुए शोध कार्यों की सफलता हेतु शुभकामना दी। इस अवसर पर अध्यक्ष विधान सभा हरबंस कपूर ने कहा कि यह सौभाग्य का विषय है, कि विश्व स्तर के इस संस्थान मंे भूकम्प के पूर्वानुमान जैसे विषय को लेकर देश के वैज्ञानिक एक जगह एकत्र हुए हैं। उन्होंने कहा कि भूकम्प नियत्रंण मनुष्य के हाथ में नहीं है, किन्तु इसकी पूर्व सम्भावनाओं को शोध आदि से प्राप्त कर लोगों को इससे सचेत कर नुकसान कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं से संवेदनशील है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह संस्थान प्रदेश ही नहीं अपितु विश्व समुदाय की सेवा करने में भी सहायक होगा। श्री कपूर ने कहा कि ग्लेशियर का पिघलना पूरे देश की चिन्ता का विषय है तथा इनके सुरक्षित होने से मानव समाज को पर्याप्त मात्रा में पानी की कमी से रूबरू नहीं होना पडे़गा। उन्हांेने कहा कि हमारे प्रदेश के लोग प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण हेतु पूर्व से ही संवेदनशील हैं। प्रदेश का 65 प्रतिशत वन भू-भाग होने के कारण विकास की गति को बनाने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन की सुरक्षा करने का हमारा दोहरा दायित्व है। इस कारण कार्यशाला में आये विचार राज्य के परिपे्रक्ष्य में उपयोगी होंगे। उन्होंने राज्य के परिप्रेक्ष्य में भूकम्प पर जानकारी संकलन का आह्वान भी किया। पूर्व सचिव समुद्री विकास भारत सरकार पदमश्री डा. हर्ष के. गुप्ता ने कहा कि भूकम्प की भविष्य वाणी से जन, पशु तथा धनहानि को कम किया जा सकता है। इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर यह कार्यशाला मानव समाज के कल्याण के लिए बहुमूल्य होगी। उन्होंने मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष विधान सभा की उपस्थिति को गरिमामय बताते हुए कार्यशाला की सफलता की कामना की। इस अवसर पर वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया संस्थान ए. के. दुबे ने उपस्थित वैज्ञानिकों का साधूवाद किया। इससे पूर्व वाड़िया इंस्टिट्यूट के निदेशक डा. वी. राज अरोड़ा ने कार्यशाला के उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यशाला में मुख्य सचिव इन्दु कुमार पाण्डे, यू-कोस्ट के निदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल, यू-सैक के निदेशक एम.एम. किमोठी, निदेशक मौसम विभाग डा. आनन्द शर्मा, पूर्व निदेशक वाड़िया इंस्टिट्यूट डा. वी. सी. ठाकुर, डा. एन. एस. द्विवेदी, डा.एस.सी.डी. शाह सहित अनेक वैज्ञानिक उपस्थित थे।

1 टिप्पणी:

  1. विज्ञान न्यूज ब्लाॅग अपने आप में काफी ज्ञानवर्धक है। इससे आम लोगों को विज्ञान के प्रति नवीन जानकारियां मिल सकेगी। आपके प्रयास के लिए शुभकामनाएं।

    के.एस.पंवार,
    उत्तरकाशी

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