शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

हिमालयी राज्यों क सम्मेलन


पर्वतीय विकास मंत्रालय का गठन हो: निषंक
देहरादून 30 अक्टूबर
हिमालयी राज्यों के सर्वांगीण विकास के लिए अलग से केन्द्रीय पर्वतीय विकास मंत्रालय का गठन किया जाय। जिसमें पृथक नियोजन नीति एवं बजट का प्राविधान भी हो। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डाॅ. रमेष पोखरियाल ‘‘निषंक‘‘ ने षिमला में आयोजित हिमनद, जलवायु परिवर्तन, जीविकोपार्जन पर हिमालयी राज्यों के सम्मेलन के अवसर पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों के लिए एक पृथक वन एवं कृषि नीति की आवष्यकता है। डा. निषंक ने मुख्यमंत्री डा. निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड की वन सम्पदा, जल सम्पदा एवं पर्यावरणीय सम्पदा पूरे देष एवं विष्व के लिए है। जिसके लिए केन्द्र सरकार को राज्य को इनके संरक्षण-संवर्द्धन के लिए आर्थिक प्रतिपूर्ति करनी चाहिए। उत्तराखण्ड के वन पूरे देष एवं दुनिया को प्राण वायु आक्सीजन प्रदान करते हैं और केन्द्र सरकार उत्तराखण्ड को प्रतिवर्ष 10 हजार करोड़ रूपये की प्रतिपूर्ति करे। उत्तराखण्ड में हिमालय के अनुकूल ईको-टूरिज्म, आयुर्वेद योग टूरिज्म एवं लघु खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव हमारी अमूल्य जड़ी-बूटियों पर भी पड़ रहा है। केन्द्रीय वन अधिनियम के अनुपालन में पर्वतीय क्षेत्र की जनता अपने सामान्य सड़क-बिजली-पानी के अधिकारों से भी वंचित हो जाती है। विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं मैदान को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, जो पहाड़ों पर अव्यवहारिक होती हैं। डा. निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड, हिमाचल व अन्य हिमालयी राज्य भी इससे अछूते नहीं है। जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण संरक्षण की चुनौतियों ने सर्वाधिक हमारे परिवेश पर प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा कि हिमालय प्रभावित होगा तो पूरा देश प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र भारत वर्ष की एक बड़ी आबादी का जीवन श्रोत है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड के वन दस हजार करोड़ रूपये से अधिक मूल्य की आक्सीजन देश को देते हैं। उन्होंने मांग की कि देश की आर्थिक खुशहाली व प्रगति के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण व पारिस्थिकी संतुलन बनाए रखने के लिए केन्द्र सरकार को अलग से नीति बनानी चाहिए। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने यह भी बताया कि ग्लेशियर तथा उनसे निकलने वाली नदियां समूचे उत्तर भारत में पानी का प्रमुख श्रोत हैं और इनके प्रभावित होने का अर्थ पानी की गम्भीर समस्या का उत्पन्न होना है। उन्होंने ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 9000 से अधिक ग्लेशियरों में से 1439 ग्लेशियर उत्तराखण्ड में हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में 500 घन किमी. ताजा जल संचित होता है। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग का हिमनदों पर प्रभाव व जलवायु परिवर्तन ऐसी समस्या है जिसका समाधान ढूंढने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवन शैली में परिवर्तन, ग्रीन-हाउस गैसांे के उत्सर्जन को कम, वनों को बढ़ाकर ही हम ग्लोबल वार्मिंग को रोक सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन समाधानों का हिमालयी क्षेत्र की जनता की प्रगति-उन्नति पर प्रभाव न पड़े यह भी हमें ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा कि अधिक वनाच्छादित क्षेत्र वाले राज्य में जनता को जंगल से दूर करके कोई नीति कारगर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड अपनी वन भूमि से केवल चुगान भी करे तो वह सालाना लगभग डेढ़ हजार करोड़ से दो हजार करोड़ की आय कर सकता है। मुख्यमंत्री ने पिछले वर्षों में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन और हिमालयी राज्यों में उसके फलस्वरूप उत्पन्न चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा भी की।

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

माइग्रेन की वजह से दिमाग की बनावट में बदलाव

माइग्रेन की वजह से दिमाग की बनावट में बदलाव
देहरादून 25 अक्टूबर
माइग्रेन से पीड़ित व्यक्ति की दिमागी संरचना अन्य लोगों से थोड़ी अलग होती है। यह अंतर खासतौर पर दिमाग के कॉर्टेक्स क्षेत्र में होता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के बाद यह जानकारी दी है।


हालाँकि शोध में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि इस अंतर की वजह से किसी को माइग्रेन की बीमारी होती है या फिर माइग्रेन की वजह से दिमाग की बनावट में बदलाव आता है।

शोधकर्ता टीम ने ऐसे 24 लोगों की ब्रेन स्कैनिंग की, जो लंबे समय से माइग्रेन से जूझ रहे थे। उनके साथ ही 12 स्वस्थ लोगों के ब्रेन की स्कैनिंग की गई। उन्होंने पाया कि माइग्रेन पीड़ितों का कार्टेक्स यानी दिमाग का वह हिस्सा जो दर्द, स्पर्श या तापमान जैसी संवेदनाओं को महसूस करता है, अन्य लोगों की तुलना में 21 फीसदी मोटा होता है।

शोध का नेतृत्व करने वाली मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल की डॉ. नौशील हैदजीखनी ने बताया कि सबसे ज्यादा अंतर सिर और चेहरे से जुड़ी सेंसरी इंफॉर्मेशन की प्रोसेसिंग के लिए जिम्मेदार कार्टेक्स के हिस्से में देखने को मिला। उन्होंने कहा कि अध्ययन से माइग्रेन की गंभीरता भी सामने आई है। इस बीमारी को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह दिमाग में बदलाव ला सकती है।

डॉ. नौशीन कहती हैं कि एक संभावना यह हो सकती है कि कार्टेक्स जैसे दिमाग के सेंसरी फील्ड में लंबे समय तक बार-बार उत्तेजना या उकसाव से वह मोटा होने लगता है। दूसरी संभावना यह हो सकती है कि जिन लोगों का कार्टेक्स मोटा होता है उन्हें आगे चलकर माइग्रेन का सामना करना पड़ता हो।

यह है माइग्रेन : माइग्रेन एक प्रकार का सिरदर्द है, जो आधे सिर में होता है। इसके साथ उल्टी होने की शिकायतें भी होती है। महिलाओं में यह बीमारी पुरुषों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होती है।

कई लोगों में यह बीमारी आनुवांशिक होती है। डॉ. नौशीन कहती हैं कि हम माइग्रेन के कारणों को जितना ज्यादा समझ सकेंगी, इसके इलाज के लिए उतनी ही प्रभावी दवाइयाँ बनाई जा सकेंगी।

ग्लोबल वॉर्मिंग की पहली ऑफिशल विस्थापित कम्युनिटी

देहरादून 25 अक्टूबर
पापुआ न्यू गिनी दुनिया
के नक्शे से जल्दी ही गायब हो जायेगा। क्योकि इस छोटे से मुल्क में कुछ ऐसा हो रहा है, जो
हम सबके लिए खतरे की बड़ी घंटी है। जिसे हमने अब भी नहीं सुना तो शायद बहुत देर हो जाएगी।

ऑस्ट्रेलिया के पास मौजूद इस देश का एक पूरा द्वीप डूबने वाला है। कार्टरेट्स नाम के इस आइलैंड की पूरी आबादी दुनिया में ऐसा पहला समुदाय बन गई है जिसे ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अपना घर छोड़ना पड़ रहा है - यानी ग्लोबल वॉर्मिंग की पहली ऑफिशल विस्थापित कम्युनिटी। जिस टापू पर ये लोग रहते हैं वह 2015 तक पूरी तरह से समुद्र के आगोश में समा जाएगा

उत्तराखण्ड में 400 साल पुराना महावृक्ष

उत्तराखण्ड में 400 साल पुराना महावृक्ष
देहरादून 25 अक्टूबर एशिया में चीड़ एवं देवदार प्रजाति के वृक्षों में उत्तराखंड के जंगलों का दबदबा रहा है। इसके साथ ही मोटाई में एशिया में दूसरे नंबर का देवदार वृक्ष भी चकराता वन प्रभाग की कनासर रेंज में ही है। उत्तरकाशी के टौंस वन प्रभाग अंतर्गत कोठिगाड़ रेंज के बालचा वन क्षेत्र जनपद देहरादून की सीमांत तहसील त्यूणी से सटा हुआ है। देवदार के इस महावृक्ष की मोटाई (गोलाई) 8.25 मीटर और ऊंचाई 48 मीटर है। इस वृक्ष की आयु 400 साल से अधिक बताई जाती है। वर्ष 1994 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इसे महावृक्ष के रूप में पुरस्कृत किया गया था। भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के म्यूजियम में देवदार वृक्ष की जो सबसे अधिक गोलाई की अनुप्रस्थ काट प्रदर्शित की गई है, वह वृत भी इसी खंड में स्थित थी, जिसके अवशेष अब भी मौजूद हैं। देहरादून जिले के चकराता वन प्रभाग अंतर्गत कनासर रेंज में स्थित देवदार का एक और वृक्ष महावृक्ष बनने की होड़ में अपना आकार फैला रहा है। चकराता-त्यूणी मोटर मार्ग पर कोटी-कनासर वन खंड में स्थित इस देवदार वृक्ष की मोटाई (गोलाई) 6.35 मीटर है। इस वृक्ष की अनुमानित आयु 600 साल से अधिक बताई जाती है। देवदार एवं चीड़ प्रजाति के वृक्षों की चाहे ऊंचाई की बात रही हो या मोटाई की, महावृक्ष का खिताब पाने में पूरे एशिया में उत्तराखंड के जंगलों का ही दबदबा रहा है। एशिया के सबसे ऊंचे चीड़ महावृक्ष में भी उत्तराखंड राज्य के टौंस वन प्रभाग ने अपनी पहचान बनाई।