शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

एडवांसेज इन सेपरेशन टेक्नोलाॅजी विषय पर सिंपोजियम संपन्न

तकनीकी ज्ञान का परस्पर आदान-प्रदान अधिक से अधिक हो देहरादून 09 जनवरी, 2010। भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) में एडवांसेज इन सेपरेशन टेक्नोलाजी विषय पर चल रहे सिंपोजियम का शुक्रवार को समापन हो गया। इस कार्यषाला में आये विषेषज्ञों ने सेपरेशन टेक्नोलाजी के क्षेत्र में हुई अब तक की प्रगति पर प्रकाश डाला। विषेषज्ञों ने कहा कि प्रौद्योगिकी विकास के लिए तकनीकी ज्ञान का परस्पर आदान-प्रदान अधिक से अधिक होना चाहिए। संस्थान के निदेशक डा. एम.आ.े गर्ग ने गैसोलीन और डीजल से जुड़े पहलुओं पर प्रकाश डाला। साथ ही आईआईपी में एसआईएनटीईएफ नार्वे के साथ किए जा रहे सहयोगात्मक कार्यों की संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने श्रोताओं को एनटीपीसी दिल्ली और आईआईटी मुंबई के साथ कार्बन-डाई-आक्साइड कैप्चर पर संयुक्त रूप से किए गए कार्य के बारे में भी जानकारी दी। दूसरे सत्र में कार्बन-डाई-आक्साइड के अवशोषण के लिए धातु कार्बन ढांचे के अनुप्रयोग और ऊर्जा संरक्षण के लिए झिल्लियों, निष्कर्षण आदि पर हुई प्रगति पर बात की गई। वातावरण में कार्बन-डाई-आक्साइड के उत्सर्जन को कम करने पर चर्चा हुई। गौरतलब है कि इस दो दिवसीय सिंपोजियम में विभिन्न विषयों पर कुल पांच तकनीकी सत्र आयोजित किए गए थे। इस दौरान एसआईएनटीईएफ नार्वे की एलिजाबेथ टंगस्टैड, रिचर्ड 4लाम, डा. राकेश अग्रवाल, डा. झूमा, प्रो. वीजी गायकर, जेएनयू नई दिल्ली की डा. मालती गोयल, आईआईटी रुड़की के प्रो. आईएम मिश्र आदि उपस्थित थे।

3 करोड़ रुपये की लागत से बने बायोटैक्नोलाॅजी भवन का लोकार्पण


नैनीताल 09 जनवरी, 2010 उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने पंतनगर में 3 करोड़ रूपये की लागत से बायोटैक्नोलाॅजी भवन तथा रूद्रपुर में 1.9 करोड़ की लागत से बने औषधि एवं खाद्य प्रयोगशाला का लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सबसे अधिक काम उत्तराखण्ड की धरती पर हो सकता है। इसके लिए हम सबकों मिलकर प्रयास करने होंगे। उत्तराखण्ड को टिश्यू कल्चर के क्षेत्र में भी आगे बढ़ाने के लिये पूरी कोशिश की जायेगी। उत्तराखण्ड राज्य को शिक्षा, हरित, ऊर्जा, पर्यटन व जैव विविधता के क्षेत्र में अग्रणी बनाना सरकार का मुख्य लक्ष्य है। हमारे पास अपार प्राकृतिक सम्पदा है, जिसका उचित दोहन कर प्रदेष को आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया जा सकता है। बायोटैक्नोलाजी प्रयोगशाला पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाने वाले विशिष्ट एवं अमूल्य प्रजातियों के संरक्षण मंे मददगार साबित होगी। बायोटैक्नोलाॅजी के विकास से रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे तथा प्रदेश के उद्योगों को लाभ होगा। डा. निशंक ने कहा कि औषधि एवं खाद्य प्रयोगशाला में औषधि एवं खाद्य पदार्थों में मिलावट का पता लगाया जा सकेगा। इसकी स्थापना से उपभोक्ताओं को शुद्ध एवं उच्च गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ एवं औषधियां मिल सकेंगी। बायोटैक्नोलाॅजी परियोजना के निदेशक एवं वैज्ञानिक सलाहकार राजेन्द्र डोभाल ने बताया कि बायोटैक्नोलाॅजी भवन में नैनो टैक्नोलाॅजी, डीएनए मार्किंग पर बौद्धिक अधिकार (पेटेण्ट) आदि पर कार्य होगा। उन्होंने बताया कि भवन में लगभग 40 लाख के अत्याधुनिक उपकरण स्थापित किए गये हैं।