रविवार, 21 नवंबर 2010

टमाटर हडियों को मजबूत करने में सहायक

देहरादून 21 नवम्बर, 2010
ब्रिटिश अखबार डेली मेल में प्रकाषित खबर के अनुसार कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये ताजा अध्ययन से पता चला है कि अगर रोजाना दो गिलास टमाटर का रस पीया जाय, तो इससे हड्डियों को मजबूती मिलेगी। उनके अनुसार टमाटर में मौजूद लाइकोपीन एक एंटी ऑक्सीडेंट है। यह पुरुषों के प्रॉस्टेट कैंसर के खतरे को कम करने में और दिल की बीमारियों से बचाव करने में सहायक है। अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 50 से 60 वर्ष की उम्र वाली 60 महिलाओं को एक महीने के लिए अपने भोजन से टमाटर को हटाने के लिए कहा। इसके परिणाम चौंकाने वाले थे। उन महिलाओं के खून में एन-टीलोपेप्टाइड रसायन के स्तर में वृद्धि देखी गई। वास्तव में खून में इस रसायन का स्तर बढ़ने से हड्डियों के टूटने की आशंका बढ़ जाती है। बाद में चार महीने के लिए उन्हीं महिलाओं को हरेक दिन टमाटर का रस दिया गया। इससे उनके खून में हड्डियों को कमजोर करने वाले रसायन के स्तर में कमी आई।

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

बौद्धिक संपदा पर दो दिवसीय कार्यषाला शुरू

देहरादून 13 अगस्त, 2010 (एजेंसी) उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिक परिषद (यूकॉस्ट) एवं राष्ट्रीय शोध विकास निगम (एनआरडीसी) की ओर से बौद्धिक संपदा तथा ज्ञान युग में खोज प्रबंधन विषय पर दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार का उद्घाटन करते हुए प्रो. एएन पुरोहित ने कहा कि बौद्धिक संपदा अधिकार के संबंध में युवा वैज्ञानिकों को जानकारी व जागरूकता उन्हें भविष्य में अपने शोध कार्यों को पेटेंट द्वारा संरक्षण कर उसके औद्योगिकीकरण में सहायता करेगी। यूकॉस्ट के निदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल ने कहा कि देवभूमि उत्तराखंउ ज्ञान संपदा तथा अपनी सूझबूझ से किए गए अविष्कारों से भरी पड़ी है तथा उसे संबंधित विशेषज्ञों व वैज्ञानिक समुदाय द्वारा निखार एवं सुधार कर एक नए कलेवर में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश को एक नया बौद्धिक संपदा अधिकार केंद्र स्थापित करने की स्वीकृति प्राप्त हुई है।
एनआरडीसी के उपप्रबंधक वीके जैन ने कहा कि उत्तराखंड तथा राष्ट्र के शोध कर्मी एक और महत्वपूर्ण समस्या से जूझ रहे हैं। लेकिन एनआरडीसी द्वारा इस दिशा में अब तक किए गए प्रयासों के सार्थक फल हमे शीघ्र ही दिखाई देंगे।

बुधवार, 11 अगस्त 2010

वैज्ञानिक उपाध्याय ने जिंगो बाइलोबा के 1100 पौध तैयार की

11 अगस्त, 2010: देहरादून एजेंसी
सेंटर काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेद के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार डा. एस.के. उपाध्याय ने जिंगो बाइलोबा नामक चमत्कारिक पौधे की करीब 1100 पौध तैयार की हैं। यह पौधा करोड़ों वर्ष पुराना है, जो अभी तक देश में कुछ जगह ही पाया जाता है था और विलुप्ति के कगार पर है। अब इसे पौधे तैयार होने से इसे देशभर बांटा जा सकेगा। प्रागैतिहासिक काल से भी करोड़ों वर्ष पूर्व का जिंगो नामक यह पौधा विश्व में बेहद कम हैं। पूरे भारत में केवल सात पौधे हैं, वो भी उत्तराखंड में। औषधीय गुणों से लबरेज यह पौधा बुढ़ापे के स्मृति लोप के अलावा हृदय रोग, कैंसर, ग्लूकोमा और डिप्रेशन जैसी बीमारियों को दूर करता है। इस पौधे पर कई खोज हो चुकी हैं। खासकर चीन और जापान के वनस्पति विज्ञानियों ने इस पर काफी काम किया है। बकौल डॉ. उपाध्याय, कार्बन डेटिंग के हिसाब से वैज्ञानिकों ने इस पौधे का इतिहास करीब 27 करोड़ वर्ष पुराना आंका है। मैरीलेंड मेडिकल सेंटर, अमेरिका ने इसकी पुष्टि की है। भारत में इस पौधे की उपलब्धता कम होने से यहां के वैज्ञानिक इस पर कोई खोज करने में अब तक अक्षम रहे हैं। जबकि बुढ़ापे की बीमारियों पर लगातार खोज करने वाले जर्मनी के वैज्ञानिक प्रो. राल ऐले की रिसर्च बताती है कि जिंगो का प्रयोग करने से धमनियों में रक्त प्रवाह में होने वाली बाधा, जिससे हृदय रोग होता है और गठिया जैसी बीमारियां दूर की जा सकती हैं।

सोमवार, 24 मई 2010

वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में साहित्यकार एवं पत्रकारों का योगदान

देहरादून। भारतीय विज्ञान लेखक संघ उत्तराखंड चैप्टर की ओर से लोकप्रिय विज्ञान व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में साहित्यकार एवं पत्रकारों का योगदान’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई। इसमें विज्ञान, साहित्य और पत्रकारिता को एक-दूसरे का पूरक बताया गया है। साथ ही विज्ञान पत्रकारिता में गंभीर और सजग पत्रकारिता की आवश्यकता जताई गई।
रविवार को मंथन सभागार में आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता वाडिया इंस्टीटूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आरजे आजमी ने कहा कि निश्चित तौर पर पत्रकारिता जन-सामान्य तक विज्ञान को पहुंचाने का काम करती है। लेकिन आवश्यकता है कि किसी भी चीज की रिपोर्टिंग करते वक्त तथ्य की पूरी जांच पड़ताल कर ली जाए। क्योंकि तथ्य को समझे बिना रिपोर्ट को छापने से समाज में सही संदेश नहीं जाता है। अपनी ही एक रिसर्च का उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 2000 में जिस रिपोर्ट को पूरी तरह से गलत ठहरा दिया गया था, उसे वर्ष 2007 में सत्य करार देते हुए छापा गया। इस मौके पर साहित्यकार लीलाधर जगूड़ ने कहा कि पत्रकारिता एवं साहित्यकार एक दूसरे के पूरक हैं। लेकिन आज के समय में पत्रकारिता के मानदंड में जबरदस्त बदलाव आ गया है। यह सही भी है कि कोई चीज जब तक बिकाऊ नहीं है तब तक टिकाऊ नहीं है। यह सिद्धांत पत्रकारिता के साथ भी है। संगोष्ठि में प्रतिभाग कर रहे पत्रकारों ने कहा कि वैज्ञानिकों को भी अपनी सामाजिक एवं नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए किसी भी घटना के वक्त राय या सुझाव देने के लिए आसानी से उपलब्ध होना चाहिए। अकसर देखा जाता है कि घटना विशेष पर वैज्ञानिक इजाजत न होने की बात कहकर अपने विचार व्यक्त करने से बचते हैं। इससे घटना विशेष की सही जानकारी आम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाती और एक भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
इस मौके पर डॉ. धीरेंद्र शर्मा, डॉ. देवेंद्र भसीन, डॉ. एमएन जोशी समेत अन्य उपस्थित थे।

सोमवार, 29 मार्च 2010

किसान ने किया हवा से चलने वाले आॅटो का आविश्कार

ऊधमसिंहनगर (वि.एन.)ः विज्ञान के क्षेत्र में अक्सर कहा जाता है कि आवष्यकता ही आविश्कार की जननी है और इसी बात को झनकट के सड़ासड़िया गांव निवासी अशोक ने चरित्रार्थ किया है। उन्होंने एक ऐसा इंजन तैयार किया है जो हवा से चलेगा। इस इंजन से आॅटो भी चलाया जा सकेगा। इससे प्रदूषण का खतरा कम होने के साथ तेल की बचत भी होगी साथ ही प्रति किमी का खर्चा सिर्फ पचास पैसा आएगा। 
श्री अषोक ने पहली बार 1982 में पानी से चलने वाला इंजन तैयार किया था। इस इंजन से पंपिंग सेट चलाए जा सकते थे। साथ ही क्षमता बढ़ाकर इससे आरा मशीन, ग्राइंडिंग मशीन और क्रेशर तक चलाए जा सकते थे। इन परेशानियों को देखते हुए उन्होंने अन्य विकल्पों पर काम जारी रखा। उसका फल यह हुआ कि 28 वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने हवा से चलने वाला इंजन बनाने में सफलता प्राप्त कर ली। प्रयोग के तौर पर अभी वह कंप्रेसर से इंजन में हवा छोड़ते हैं। इससे बनने वाला प्रेशर पिस्टन और पिस्टन मोटर को चला देता है। हवा से चलने वाले अॉटो में एक सिलेंडर होगा, जिसमें हवा भरी रहेगी। उसके प्रेशर से इंजन चलेगा। हर दस किलोमीटर के बाद सिलेंडर में हवा भरी जाएगी। एक बार हवा भरने का खर्च मात्र पांच रुपये आता है। इस तरह दस किलोमीटर की यात्रा पांच रुपये में हो जाएगी। अशोक के इस अभिनव आविष्कार को राष्ट्रीय नव प्रवर्तन प्रतिष्ठान एवं साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग ने मान्यता दी है। अशोक को प्रौद्योगिकी पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 
अशोक ने बताया कि आठ माह के भीतर कंप्रेस्ड इंजन से चलने वाला अॉटो रिक्शा बाजार में आ जाएगा। इस अॉटो में ड्राइवर के अलावा चार सवारियों के लिए जगह होगी। इंजन को बनाने में होंडा बाइक के पिस्टन और के्रंक का इस्तेमाल किया गया है। क्षमता बढ़ाने के बाद इससे थ्रेसर, क्रेसर मशीन, ग्राइडिंग मशीन, आरा मशीन आदि भी चलाई जा सकेंगी।

रविवार, 21 मार्च 2010

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सोमवार, 8 मार्च 2010

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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

एडवांसेज इन सेपरेशन टेक्नोलाॅजी विषय पर सिंपोजियम संपन्न

तकनीकी ज्ञान का परस्पर आदान-प्रदान अधिक से अधिक हो देहरादून 09 जनवरी, 2010। भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) में एडवांसेज इन सेपरेशन टेक्नोलाजी विषय पर चल रहे सिंपोजियम का शुक्रवार को समापन हो गया। इस कार्यषाला में आये विषेषज्ञों ने सेपरेशन टेक्नोलाजी के क्षेत्र में हुई अब तक की प्रगति पर प्रकाश डाला। विषेषज्ञों ने कहा कि प्रौद्योगिकी विकास के लिए तकनीकी ज्ञान का परस्पर आदान-प्रदान अधिक से अधिक होना चाहिए। संस्थान के निदेशक डा. एम.आ.े गर्ग ने गैसोलीन और डीजल से जुड़े पहलुओं पर प्रकाश डाला। साथ ही आईआईपी में एसआईएनटीईएफ नार्वे के साथ किए जा रहे सहयोगात्मक कार्यों की संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने श्रोताओं को एनटीपीसी दिल्ली और आईआईटी मुंबई के साथ कार्बन-डाई-आक्साइड कैप्चर पर संयुक्त रूप से किए गए कार्य के बारे में भी जानकारी दी। दूसरे सत्र में कार्बन-डाई-आक्साइड के अवशोषण के लिए धातु कार्बन ढांचे के अनुप्रयोग और ऊर्जा संरक्षण के लिए झिल्लियों, निष्कर्षण आदि पर हुई प्रगति पर बात की गई। वातावरण में कार्बन-डाई-आक्साइड के उत्सर्जन को कम करने पर चर्चा हुई। गौरतलब है कि इस दो दिवसीय सिंपोजियम में विभिन्न विषयों पर कुल पांच तकनीकी सत्र आयोजित किए गए थे। इस दौरान एसआईएनटीईएफ नार्वे की एलिजाबेथ टंगस्टैड, रिचर्ड 4लाम, डा. राकेश अग्रवाल, डा. झूमा, प्रो. वीजी गायकर, जेएनयू नई दिल्ली की डा. मालती गोयल, आईआईटी रुड़की के प्रो. आईएम मिश्र आदि उपस्थित थे।

3 करोड़ रुपये की लागत से बने बायोटैक्नोलाॅजी भवन का लोकार्पण


नैनीताल 09 जनवरी, 2010 उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने पंतनगर में 3 करोड़ रूपये की लागत से बायोटैक्नोलाॅजी भवन तथा रूद्रपुर में 1.9 करोड़ की लागत से बने औषधि एवं खाद्य प्रयोगशाला का लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सबसे अधिक काम उत्तराखण्ड की धरती पर हो सकता है। इसके लिए हम सबकों मिलकर प्रयास करने होंगे। उत्तराखण्ड को टिश्यू कल्चर के क्षेत्र में भी आगे बढ़ाने के लिये पूरी कोशिश की जायेगी। उत्तराखण्ड राज्य को शिक्षा, हरित, ऊर्जा, पर्यटन व जैव विविधता के क्षेत्र में अग्रणी बनाना सरकार का मुख्य लक्ष्य है। हमारे पास अपार प्राकृतिक सम्पदा है, जिसका उचित दोहन कर प्रदेष को आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया जा सकता है। बायोटैक्नोलाजी प्रयोगशाला पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाने वाले विशिष्ट एवं अमूल्य प्रजातियों के संरक्षण मंे मददगार साबित होगी। बायोटैक्नोलाॅजी के विकास से रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे तथा प्रदेश के उद्योगों को लाभ होगा। डा. निशंक ने कहा कि औषधि एवं खाद्य प्रयोगशाला में औषधि एवं खाद्य पदार्थों में मिलावट का पता लगाया जा सकेगा। इसकी स्थापना से उपभोक्ताओं को शुद्ध एवं उच्च गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ एवं औषधियां मिल सकेंगी। बायोटैक्नोलाॅजी परियोजना के निदेशक एवं वैज्ञानिक सलाहकार राजेन्द्र डोभाल ने बताया कि बायोटैक्नोलाॅजी भवन में नैनो टैक्नोलाॅजी, डीएनए मार्किंग पर बौद्धिक अधिकार (पेटेण्ट) आदि पर कार्य होगा। उन्होंने बताया कि भवन में लगभग 40 लाख के अत्याधुनिक उपकरण स्थापित किए गये हैं।