बुधवार, 4 नवंबर 2009

दो दिवसीय वैज्ञानिक कार्यषाला


पर्वतीय क्षेत्र के औद्योगिक एवं पर्यावरण संरक्षण पर दो दिवसीय वैज्ञानिक कार्यषाला
राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप स्थापित हो लघु औद्योगिक इकाईयां: डाॅ निषंक
देहरादून, 04 नवम्बर, मुख्यमंत्री डाॅ. रमेष पोखरियाल निषंक ने वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में ‘पर्वतीय क्षेत्र के औद्योगिक एवं पर्यावरण संरक्षण’ पर आयोजित दो दिवसीय कार्यषाला का षुभारम्भ करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड की परिस्थितियांे को देखते हुए यहां की पृष्ठभूमि के अनुरूप उद्योग से जुड़ी संभावनाओं को तलाष जाय। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में ठोस कार्ययोजना के तहत लघु औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की आवष्यकता है। जिससे युवाओं का पलायन रोका जा सके। लद्यु औद्योगिक इकाइयां यहां के औद्योगिक, आर्थिक एवं सामाजिक दिषा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। मुख्यमंत्री डाॅ. निषंक ने कहा कि कार्यषाला प्रदेष की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास को प्रोत्साहन देने के लिए महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने वैज्ञानिकों से अपील की, कि यहां के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप कम समय और कम श्रम में स्थानीय उत्पाद पर आधारित रोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजन करने वाली ग्रामीण उद्योगों का चिन्हीकरण करायें, ताकि यहां के लोगों में उद्यमिता विकास की भावना पैदा हो और युवाओं के पलायन को रोकने में सक्षम हो। उन्होंने कहा कि पलायन से हम पर दोहरा संकट आने की संभावना है। उन्होंने कहा कि दो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगे उत्तराखण्ड के युवाओं का पलायन रोकना आवष्यक है। लघु उद्योगों के विकास से जहां पलायन पर नियंत्रण होगा, वहीं समन्वित एवं सुनियोजित विकास से उत्तराखण्डवासियों की सामाजिक, औद्योगिक व आर्थिक प्रगति होगी। इसके लिए उन्होंने वैज्ञानिकों से आधुनिकतम एवं परिष्कृत औद्योगिकी यहां के परिपे्रक्ष्य में संस्तुति करने की अपेक्षा की। डाॅ. निषंक कहा कि हिमालयी राज्य होने के कारण यहां पर होने वाले प्रभाव देष को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की जवानी और पानी राष्ट्र को समर्पित हैं, यहां के युवा सेना में रहकर देष की रक्षा में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहे है तथा 65 प्रतिषत भू-भाग वन क्षेत्र होने के कारण यहां के लोगों का पर्यावरण सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास की चिंता करने की वैज्ञानिकों से अपील की। उन्होंने कहा कि प्रदेष को आदर्ष राज्य बनाने लिए ही उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ है। यहां पर जड़ी बूटियों की अपार संभावनाएं है, किन्तु उसके वैज्ञानिक कृषिकरण एवं विपणन के अभाव में इसका समुचित उपयोग नही हो पा रहा है। इस क्षेत्र में भी वैज्ञानिकों से सुझाव आमंत्रित किये। उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड भारतीय संस्कृति का प्राण है और यहां उपलब्ध संसाधनों एवं जैव विविधता को मध्यनजर रखते हुए उसके अनुरूप तकनीकी प्रयोग में लानी होगी। उन्होंने कहा कि यहां साहसिक, जल क्रीड़ा, की असीम संभावनाएं है तथा पर्यावरण संतुलन वाली औद्योगिक इकाईयां स्थापित करने की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप लघु औद्योगिक इकाईयों की स्थापना से ऐसा वातावरण बने जो, प्रभावी संदेष के रूप में पूरे देष में फैले। उन्होंने हिन्दी साहित्य विज्ञान परिषद द्वारा वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं षोधों को हिन्दी पत्रकारिता के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने के लिए हिन्दी विज्ञान साहित्य परिषद द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। मुख्यमंत्री द्वारा गजानन काले एवं रामप्रसाद द्वारा लिखित ‘पदार्थ अभिलक्षणन की प्रगत विधियां’ पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने वैज्ञानिक शोधों के हिन्दी भाषा के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने वाली गतिविधियों की सराहना की। इस अवसर पर भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई द्वारा संचालित हिन्दी भाषा की विज्ञान गोष्ठियों एवं साहित्य के प्रकाषन की प्रषंसा की। प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार भारत सरकार डाॅ. आर. चिदम्बरम ने कहा कि परिषद का निरंतर प्रयास रहा है, कि विज्ञान को हिन्दी में साहित्य के रूप में आमजन तक पहुंचाया जाय। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों के विकास की बहुत आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक विकास के लिए ऊर्जा की आवष्यकता है, जिसके लिए उन्होंने अन्य स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने नाभिकीय ऊर्जा एवं घराट निर्माण, जैसे विकल्पों से ऊर्जा उत्पादन की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिक ग्रामीण क्षेत्र के उद्योगों के लिए नई तकनीकी विकसित कर रहे है, जिससे ग्रामीण उद्योगों को आधुनिकता प्रदान कर ग्रामीण जीवन स्तर को उठाने में मदद मिलेगी। इस अवसर पर महानिदेषक आई.सी.एफ.आर.आई. डाॅ. जी.एस.रावत, निदेषक वन अनुसंधान संस्थान डाॅ.एस.एस.नेगी, निदेषक यूकाॅस्ट डाॅ. राजेन्द्र डोभाल, निदेषक जैव चिकित्सा डाॅ. कृष्णा वी.सैनिष, हेस्को संस्थापक डाॅ. अनिल जोषी ने भी हिन्दी विज्ञान परिषद के विज्ञान को आम जन की भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयासों की सराहना की। कार्यषाला के तकनीकी सत्र में अपर निदेषक उद्योग सुधीर चन्द्र नौटियाल तथा सी.आई.आई के प्रतिनिधि राकेष ओबराॅय ने भी पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग की संभावनाओं पर विस्तृत प्रकाष डाला।