रविवार, 20 दिसंबर 2009

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2010 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष घोषित

देहरादून 20 दिसम्बर, 2009। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2010 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष घोषित किया गया है। वर्ष 2010 को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाने के लिए भारत में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने तैयारियां शुरू कर दी है। इसके तहत जैव विविधता के महत्व, संरक्षण एवं इनके प्रभावों के संबंध में जनता को जागरूक किया जायेगा। इसके साथ ही सरकारी संस्थाओं एवं समुदायिक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण पर कार्य करने वाले लोगों एवं संस्थाओं को सम्मानित किया जायेगा, साथ ही जैव विविधता के लिए उत्पन्न होने वाले खतरे को कम करने के लिए नवीन शोधों और अनुसंधानों को बढ़ावा दिया जायेगा। भारत सरकार ने इस संबंध में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर दिया है, जो 2010 में वर्ष भर चलने वाले जैव विविधता कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करेगी।

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संधि का पालन हो


प्रधानमंत्री ने पुरानी मांगें दोहराईं

मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंह ने कोपेनहेगन से रवाना होने से पहले भी यही बातें कही थीं
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोपेनहेगन के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत की पुरानी मांगें दोहराते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जो दोषी नहीं हैं, उन्हें उसकी सज़ा नहीं मिलनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि एक तो संयुक्त राष्ट्र के क़ायदों के अनुरुप समझौता होना चाहिए और दूसरे बाली में बनी सहमति को अनदेखा नहीं करना चाहिए.
बाली में बनी सहमति के अनुसार जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए ज़िम्मेदारियाँ देशों की क्षमताओं के अनुरुप तय होनी चाहिए.
उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर तीन सबक सीखने को मिले हैं.
पहले सबक का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, "रियो सम्मेलन या क्योटो संधि के समय हमारे सामने कार्रवाई की जो योजना रखी गई थी वह इस समय बहुत नहीं बदली है. इसीलिए हमें बाली कार्ययोजना पर अमल करना चाहिए जिससे कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संधि का पालन कर सकें."
उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में जो भी तय हो वह बाली कार्य योजना के तहत ही तय होना चाहिए.
इस सम्मेलन का चाहे जो भी परिणाम निकले भारत ने अपने लिए कुछ लक्ष्य तय कर लिए हैं और वह इनका पालन करता रहेगा
मनमोहन सिंह
दूसरे सबक के रुप में उन्होंने कहा कि क्योंटो संधि की क़ानूनी बाध्यता को बरकरार रखना चाहिए.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विश्व नेताओं को चेतावनी दी कि कोपेनहेगन में ऐसी किसी सहमति को मंज़ूरी नहीं दी जानी चाहिए जिससे कि क्योटो संधि की प्रासंगिकता पर आँच आए.
तीसरे सबक के रुप में उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को विकसित देशों के साथ बोझ साझा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि विकास पर विकासशील देशों का भी बराबरी का हक़ है.
मनमोहन सिंह ने कहा, "इस सम्मेलन का चाहे जो भी परिणाम निकले भारत ने अपने लिए कुछ लक्ष्य तय कर लिए हैं और वह इनका पालन करता रहेगा."
उन्होंने विश्व नेताओं को बताया कि वर्ष 2020 तक भारत अपने कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2005 की तुलना में 20 प्रतिशत तक की कटौती कर लेगा.
उन्होंने कहा कि भारत ने वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा से 20 हज़ार मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है और यह फ़ैसला किया है कि वर्ष 2020 तक ऊर्जा क्षमताओं में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी करेगा.
उनका कहना था कि भारत अगले कुछ वर्षों में अपने जंगलों में 60 लाख हेक्टेयर का इज़ाफ़ा करेगा.
प्रधानमंत्री सिंह ने विश्व नेताओं से अपील की है कि वे सुनिश्चित करें कि विकासशील देशों के साथ कोई अन्याय न हो

मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

हिमालयी राज्यों में पहला तथा देष में चैथा राज्य, जहां विज्ञान धाम की होगी स्थापना

विज्ञान की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए सभी इंटर कालेजों, डिग्री कालेजों में स्थापित होंगे विज्ञान क्लब: डाॅ. निशंक

देहरादून 08 दिसम्बर। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने मंगलवार को देहरादून के झाझरा में उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिक परिषद के लगभग 8 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले विज्ञान धाम का शिलान्यास किया। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक ने युवा वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन हेतु 1 लाख, 51 हजार तथा 25 हजार रुपये के वैज्ञानिक पुरस्कारों की घोषणा की। उन्होंने राज्य में शीघ्र ही बौद्धिक संपदा केन्द्र तथा ज्ञान आयोग केन्द्र की स्थापना की जायेगी। उन्होंने राज्य में विज्ञान की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए सभी इंटर कालेजों, डिग्री कालेजों में विज्ञान क्लब स्थापित करने की घोषणा की, जिससे युवा वैज्ञानिकों की श्रृंखला तैयार की जा सके। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक ने कहा कि विज्ञान धाम की स्थापना होने से यहां वैज्ञानिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि विज्ञान धाम को ऐसा स्वरूप दें, जो देश भर के वैज्ञानिकों को दिशा, शोध में मददगाार बने व देशभर में प्रभावी संदेश दे। जिसका लाभ देश और दुनिया के लोगो को मिल सके। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक ऐसी तकनीक विकसित करें,, जो स्थानीय उपलब्ध संसाधनों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप हो। उन्होंने वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि ब्लाॅक स्तर पर उपलब्ध हमारे संसाधनों को विज्ञान से जोड़ें, ताकि इसका अधिक लाभ जनता को मिल सके। बौद्धिक संपदा केन्द्र स्थापित करना हमारी पहली प्राथमिकता है, ताकि जड़ी-बूटी तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों को पंेटेंट किया जा सके और यहां के लोगों का सामाजिक व आर्थिक स्तर ऊंचा हो सके। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक ने कहा कि हिमालय दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत है और इस क्षेत्र में घटने वाली कोई भी घटना पूरी दुनिया को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र सदियों से विज्ञान के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता रहा है और हमारे पूर्वजों द्वारा किये गये शोधों को आज पूरी दुनिया ने माना है। डाॅ. निशंक ने कहा कि उत्तराखण्ड के अनेक वैज्ञानिकों और विद्वानों ने पूरी दुनिया मंे राज्य और देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का प्रयास है कि उत्तराखण्ड की प्रतिभाएं देश-विदेश में जहां कही भी है, उन्हें एकत्रित कर सम्मानित किया जाय। डाॅ. निशंक ने कहा कि विज्ञान धाम की स्थापना के दूरगामी परिणाम सामने आयेंगे, जो देश और दुनिया को नई दिशा देंगे। डाॅ. निशंक ने कहा कि उत्तराखण्ड आध्यात्म के साथ-साथ विज्ञान के बड़े केन्द्र के रूप में विकसित होगा। डाॅ. निशंक ने कहा कि इस विज्ञान धाम में पारिस्थितिकीय संतुलित विकास, राष्ट्र की जैविक सम्पत्ति का संरक्षण, मूल्यांकन व उपयोग, ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का विकास तथा तकनीकी विकास के माध्यम से सूचनाओं का विकास व विज्ञान प्रसार को बढ़ावा देना आदि विषयों पर विशेष रूप से शोध किये जायेंगे, जिनसे निकलने वाले परिणाम सभी के लिए लाभदायक होंगे। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक ने यूकाॅस्ट के मोनोग्राम का लोकार्पण भी किया। निदेशक यूकाॅस्ट डाॅ. राजेन्द्र डोभाल ने कहा कि विज्ञान धाम की स्थापना से राज्य के छात्र-छात्राओं में विश्लेषणात्मक ज्ञान की वृद्धि हो सकेगी तथा उनका ज्ञानवर्द्धन भी होगा। उन्होंने कहा कि इस विज्ञान धाम में भारत सरकार के सहयोग से विभिन्न योजनाएं संचालित की जायेगी, साथ ही अत्याधुनिक तारामण्डल, विज्ञान म्यूजियम तथा विज्ञान भवन भी स्थापित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि विज्ञान धाम पर्यटन गतिविधियों से भी जुड़ सकेगा। विज्ञान धाम में प्रमुख क्षेत्रों में नए-नए यंत्रों का प्रदर्शन उनका डिजाइन एवं विकास को प्रदर्शित किया जा सकेगा। इसके साथ ही इससे शोध तथा प्रशिक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

वैज्ञानिक अध्ययन से प्राकृतिक रेशों को रोजगार से जोड़ा जाय: डाॅ. निशंक

देहरादून, 04 दिसम्बर। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि राज्य में प्राकृतिक रेशा बैंक स्थापित किया जायेगा। उन्होंने मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि सरकारी स्टेशनरी, फाइल फोल्डर इत्यादि के लिए प्राकृतिक रेशे एवं अन्य कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित सामग्री के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाय। प्राकृतिक रेशे से बने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखण्ड में दिल्ली हाट की तर्ज पर नये हाट भी विकसित किये जाने चाहिये। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक शुक्रवार को आई.सी.एफ.आर.ई. के सभागार में अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक रेशा वर्ष के अवसर पर उत्तराखण्ड बांस एवं रेशा विकास परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला के उदघाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक ने कहा कि प्राकृतिक रेशों से बने वस्त्रों एवं अन्य उत्पादों का वैज्ञानिक विश्लेषण कर उनके गुणों से लोगों को परिचित कराना चाहिए। लोगों में यह प्रचार करना होगा कि यदि धरती की बढ़ती उष्णता को समाप्त करना है, तो प्राकृतिक रेशों एवं अन्य कुदरती उत्पादों का अधिक से अधिक उपयोग करें। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यदि वैज्ञानिक अध्ययन किया जाय, तो यह तथ्य स्थापित होगा कि प्राकृतिक रेशे से बने कपड़े शरीर को अधिक आराम देते है। इन कुटीर उत्पादों के लिए प्रबन्धन एवं विपणन की एक ठोस नीति बनाई जानी चाहिए। उत्पादों के डिजाइन के लिए प्रोफेशनल डिजाइनरों की सेवा ली जानी चाहिए, जिससे ये उत्पाद राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगो को आकर्षित कर सकें। पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की चिंता कर रही है। वे देश यह चर्चा अधिक कर रहे, जिन्होंने सर्वाधिक रूप से पर्यावरण को प्रदूषित किया है। जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए यथा संभव कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। विशेष रूप से उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय प्रदेश में, जहां बड़े कल कारखाने नही लग सकते, वहां पर्वतीय क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए कुटीर उद्योग एक बेहतर माध्यम है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हथकरघा और हस्तशिल्प के पारंपरिक ज्ञान को सहेजने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। रोजगार, आर्थिक उत्थान, जड़ी बूटी आयुर्वेद, आजीविका और अन्य ग्राम्य विकास की योजनाओं को मिलाकर एक समग्र नीति बनाई जाय। रोजगार सृजन के कार्यक्रमों से मातृ शक्ति को जोड़ा जाय। सरकार ने सम्पूर्ण ग्रामीण विकास के उद्देश्य से अटल आदर्श ग्राम योजना शुरू की है। उत्तराखण्ड की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि एक सुरक्षित एवं समृद्ध भारत के लिए विकसित एवं खुशहाल उत्तराखण्ड पहली आवश्यकता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही विशिष्ट अतिथि एवं दस्तकारी हाट समिति नई दिल्ली की अध्यक्ष जया जेटली ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने उत्तराखण्ड के प्राकृतिक रेशे के उत्पादों को सराहा है। दिल्ली हाट में आयोजित होने वाली आगामी प्रदर्शनी के लिए उत्तराखण्ड की सहभागिता का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड जैसे नवोदित राज्य में प्राकृतिक रेशा विकास बोर्ड का गठन एक सराहनीय कदम है। मुख्य सचिव एन.एस.नपलच्याल ने कहा कि उत्तराखण्ड हथकरघा हस्तशिल्प विकास परिषद का गठन किया गया है। कुटीर उद्योगों के उत्पादों के लिए हिमाद्रि नाम से ब्रांडिंग की जा रही है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में हाल ही में सिल्क पार्क की स्थापना की गई है और मुख्यमंत्री के विजन 2020 के अंतर्गत 50 हजार से अधिक लोगों को रेशम उद्योग से जोड़ा जा रहा है। उत्तराखण्ड बांस एवं रेशा विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस.टी.एस.लेप्चा ने बताया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2009 को अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक रेशा वर्ष घोषित किया गया है। कार्यशाला में उत्तर प्रदेश, बिहार, सिक्किम एवं देश भर से आये विशेषज्ञ, विभिन्न स्वयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, गणमान्य लोग आदि उपस्थित थे।

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

दो दिवसीय पर्यावरण संरक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ

राज्य सरकार जलवायु परिवर्तन के लिए एक्शन प्लान तैयार करेगी: डाॅ. निशंक
देहरादून 02 दिसम्बर। मुख्यमंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि अब वक्त आ गया है कि जब पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित सभी योजनाओं को पूरी ताकत के साथ धरती पर उतारा जाय। पर्यावरण संरक्षण की योजनाओं को लागू करने में जो व्यावहारिक कठिनाईयां उत्पन्न हो रही हैं उन पर भी विचार-विमर्श होना चाहिए। मुख्यमंत्री डा. निशंक बुद्धवार को भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के सभागार में उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा सीआईआई उत्तराखण्ड के संयुक्त तत्वाधान मंे आयोजित पर्यावरण संरक्षण कार्यशाला को सम्बोधित कर रहे थे। यह दो दिवसीय कार्यशाला राष्ट्रीय प्रदूषण निवारण दिवस और राष्ट्रीय संरक्षण दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित की गई है। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने कहा कि सरकार जलवायु परिवर्तन पर एक एक्शन प्लान तैयार कर रही है और यदि आवश्यकता हुई तो जलवायु परिवर्तन पर आधारित एक अलग विभाग के गठन के सुझाव पर भी विचार किया जायेगा। उन्होंने कहा कि सरकार पर्यावरण शोध केन्द्र की स्थापना पर भी विचार कर रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों को पर्यावरण संरक्षण और विशेष रूप से वृक्षारोपण कार्यक्रम से जोड़ने के लिए पाठ्यक्रम में आवश्यक सामग्री का समावेश किया जायेगा साथ ही साल भर में निश्चित संख्या में वृक्षारोपण करने और लगाये गये पौधों की देखभाल करने के लिए बच्चों को अंक भी प्रदान किए जायेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में स्थानीय सम्पदा एवं संसाधन के आधार पर उद्योगों को बढ़ावा दिया जायेगा। उन्होंने प्रदूषण मुक्त उद्योगों को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण के साथ ही लोगों की चिन्ता भी करनी होगी। उत्तराखण्ड के जन का जल, जंगल और जमीन के साथ सकारात्मक समन्वय किया जाना आवश्यक है। अगर लोगों को प्राकृतिक संसाधनों के उपयोेग से रोका जा रहा है तो उन्हें उपयुक्त विकल्प भी प्रदान करने होंगे। मुख्यमंत्री ने पर्यावरण संरक्षण के साथ ही व्यक्ति के मानसिक एंव आन्तरिक प्रदूषण को दूर करने की आवश्यकता भी बताई। उन्होंने कहा कि भारतीय परम्परायें पूर्णतः वैज्ञानिक हैं और उन्हें ग्राह्य बनाने के लिए धर्म से जोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरू रहा है और आज पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं के लिए भारत को विश्व का नेतृत्व करना होगा। मुख्यमंत्री डाॅ. निशंक ने यू-काॅस्ट की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पत्रिका का विमोचन भी किया। कार्यक्रम में वन एवं पर्यावरण मंत्री विशन सिंह चुफाल ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि और तेजी से हो रहा नगरीकरण पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण है। उन्होंने कहा कि जंगलों को आग से बचाने के लिए सरकारी प्रयासों के साथ ही स्थानीय जनता का सहयोग भी आवश्यक है। मुख्य सचिव इन्दु कुमार पाण्डे ने कहा कि पर्यावरण एवं उद्योगों का साथ-साथ सतत विकास एक चुनौती है। उन्होंने कहा कि उद्योगों को न्यूनतम प्रदूषण उत्पन्न करने वाली अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए। अपर मुख्य सचिव एन एस नपलच्याल ने कहा कि उत्तराखण्ड में 12 हजार वन पंचायतें हैं, जो 3 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र की देखरेख करती हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड एक आर्गेनिक एवं हर्बल स्टेट के रूप में आगे बढ़ रहा है। कार्यशाला में हैदराबाद से आये गोदरेज ग्रीन बिल्डिंग प्रोजेक्ट के निदेशक एस रघुपति ने कार्बन फुट प्रिंट और ग्रीन बिल्डिंग्स पर आधारित एक व्यापक प्रस्तुतीकरण दिया। यू-कास्ट के निदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल ने कार्यशाला में धन्यवाद ज्ञापित किया। डाॅ. डोभाल ने पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त भी किये। इस अवसर सीआईआई उत्तराखण्ड के अध्यक्ष राकेश ओबेराॅय, दून विश्वविद्यालय के कुलपति गिरजेश पंत सहित बड़ी संख्या में वैज्ञानिक, उद्योगपति एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

सोमवार, 30 नवंबर 2009

जनवरी 2010 में राष्ट्रीय स्तर की विज्ञान निबंध प्रतियोगिता का आयोजन

देहरादून 30 नवम्बर, 2009 राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इण्डिया द्वारा ‘इण्डियन स्पेस मिशन’ विषय पर विज्ञान निबंध प्रतियोगिता का आयोजन आगामी जनवरी 2010 तक किया जायेगा। राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, इण्डिया के कोआॅर्डिनेटर प्रो. एस.एल. श्रीवास्तव ने बताया कि इस प्रतियोगिता में B.Tech./M.B.B.S./B.U.M.S./B.A.S.M. के छात्र-छात्राएं प्रतिभाग कर सकते है। श्री श्रीवास्तव ने बताया कि इस राष्ट्रीय प्रतियोगिता में इच्छुक छात्र-छात्राएं 15 जनवरी 2010 तक ‘इण्डियन स्पेस मिशन’ विषय पर अपने आलेख भेज सकते है। इन आलेखों का परीक्षण कर सर्वोत्तम आलेख चुनकर, छात्र-छात्राओं को प्रतिभाग के लिए आमंत्रित किया जायेगा। उन्होंने बताया कि चुने गये 5 छात्र-छात्राओं को आगामी 26 फरवरी 2010 को आयोजित होने वाले आॅन स्पाॅट कान्टेस्ट के लिए आमंत्रित किया जायेगा, जिन्हें इलाहबाद में आयोजित इस प्रतियोगिता में दिये गये विषय पर 3 घंटे में निबंध लिखना होगा। विजयी प्रतिभागी को 28 फरवरी 2009 को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर सम्मानित किया जायेगा।

जनवरी 2010 में अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला

देहरादून 30 नवम्बर, 2009 परमाणु ऊर्जा नियामक परिषद (एईआरबी), न्यूक्लिअर पावर कारपोरेशन आॅफ इण्डिया लि. (एनपीसी.आईएल), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (आईजीसीएआर) और अंतराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के सहयोग से 11 से 15 जनवरी, 2010 को, हिन्द महासागर में सुनामी घटना के 5 वर्षों के पश्चात स्मरणोत्सव में ‘नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र स्थलों पर बाहरी बाढ़ के खतरों’’ पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जायेगा। इस कार्यशाला का उद्देश्य 26 जनवरी 2004 को हिन्द महासागर में आई सूनामी घटना के पश्चात इन पांच वर्षों में किए गए वैज्ञानिक, तकनीकी और नियामक विकास पर अंतराष्ट्रीय नाभिकीय समुदाय के मध्य सूचना का आदान-प्रदान करना है। आई.एईए के प्रतिनिधि इस कार्यशाला में 40 देशों के लगभग 70 प्रतिभागियों के शामिल होने की आशा है।

रविवार, 29 नवंबर 2009

जगदीश चंद्र बोस के 152वें जन्मदिन पर भावपूर्ण स्मरण

देहरादून 29 नवम्बर। जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 में ढाका जिले के फरीदपुर के माइमसिंह गांव में हुआ था, जो कि अब बंग्लादेश का हिस्सा है। ग्यारह वर्ष की आयु तक श्री बोस ने गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की। बाद में ये कलकत्ता आ गये और सेंट जेवियर स्कूल में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी, फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट ने बोस को भौतिक शास्त्र के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। भौतिक शास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ खराब रहने की वजह से इन्होने चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार त्यागकर कैम्ब्रिज के क्राइस्ट महाविद्यालय से बी. ए. की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1885 में ये स्वदेश लौटे तथा भौतिकी के सहायक प्राध्यापक के रूप में प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाने लगे। यहां वह 1915 तक रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका जगदीश चंद्र बोस ने विरोध किया और बिना वेतन के तीन वर्षों तक काम करते रहे, जिसकी वजह से उनकी पारिवारिक हालत खराब हो गई और उन पर काफी कर्जा हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेचनी पड़ी। चैथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दिया गया। बोस एक अच्छे शिक्षक भी थे, जो कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का उपयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र जैसे सतेन्द्र नाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने। जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन एवं धुव्रीकरण के क्षेत्र में अपने प्रयोग भी प्रारंभ कर दिये थे। लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था। मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था। आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, धवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था। बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युतचुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई। इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं। 1917 में जगदीश चंद्र बोस को नाइट (खहिगहत) की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए रॉयल सोसायटी लंदन के फैलो चुन लिए गए। बोस ने अपना पूरा शोधकार्य बिना किसी अच्छे (महंगे) उपकरण और प्रयोगशाला के किया था इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे। बोस इंस्टीट्यूट (बोस विज्ञान मंदिर) इसी सोच का परिणाम है जोकि विज्ञान में शोधकार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

Toxics Link की क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन

राज्य के बायोमेडिकल अपषिष्ट प्रबंधन में Toxics Link करेगा मदद
देहरादून 27 नवम्बर। दिल्ली की एक एनजीओ Toxics Link ने देहरादून में हेल्थ केयर को Toxics Link मुक्त करने की दिशा में पहल विषयक क्षेत्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में निष्कर्ष निकला कि उत्तराखण्ड में चिकित्सा स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत एक तिहाई संस्थाएं बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन एक्ट 1998 के तहत कार्य नही कर रही है, इससे चिकित्सा स्वास्थ्य के क्षेत्र में कचरे प्रबंधन के लिए ठोस प्रयास होने चाहिए। कार्यशाला में राज्य के चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न लोगों ने प्रतिभाग किया। जिसमे निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य डाॅ. एच.सी.भट्ट ने कहा कि राज्य सरकार अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एकीकृत व्यवस्था शुरू करने पर विचार कर रही है, साथ ही दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में सामुदायिक आधारित कचरा प्रबंधन पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को इस कार्य में Toxics Link जैसी संस्थाओं को मदद करनी चाहिए।
Toxics Link के एसोसियेट निदेशक सतीश सिन्हा ने बताया कि यह कार्यशाला काफी महत्वपूर्ण रही है और इसमें कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा हुई है। उन्होंने बताया कि यह कार्यशाला दो सत्रों में चली, जिसमें बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन तथा चिकित्सा स्वास्थ्य क्षेत्र में मरकरी के अधिक उपयोग पर चर्चा की गई। श्री सिन्हा ने बताया कि कार्यशाला में आये सुझावों को शामिल कर बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नीति तैयार की जायेगी।
कार्यशाला मेंToxics Link के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी मो. तारिख, सुश्री रागिनी कुमारी तथा विनोद आदि उपस्थित थे।

मंगलवार, 17 नवंबर 2009

समुद्र से बुझेगी प्यास

समुद्र से बुझेगी प्यास देहरादून 17 नवम्बर। विज्ञान के क्षेत्र में हर दिन नई खोज और नई चुनौतियां सामने आ रही है। आज पूरी दुनिया पीने के पानी के लिए चिंतित है कि भविष्य में कैसे पानी के अधिक स्रोत बढाये जाय। इसी दिशा में मुम्बई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र से नया प्रयोग होने जा रहा है। यहां परमाण ऊर्जा के उपयोग में आने वाला समुद्र का खारा पानी मुम्बईवासियों को पीने के लिए मिल पायेगा। इसके लिए परमाण अनुसंधान केन्द्र से पहल शुरू हो गई। अभी तक समुद्र के खारे पानी को परमाणु ऊर्जा बनाने के लिए होता था। अब अगर इस पानी का उपयोग पीने के लिए भी होगा तो इससे पानी की समस्या काफी हद तक हल हो जायेगी। साथ समुद्र के खारे पानी को वैज्ञानिक विधि से परिवर्तित कर पीने योग्य बनाया जाय, तो इससे मुम्बई जैसे शहरों की समस्या हल हो जायेगी। लेकिन इस प्रकार तैयार होने वाले पीने के पानी की कीमत पर भी सोचना होगा, क्योंकि इसकी कीमती शायद अभी तक मिलने वाले पानी से अधिक होगी।

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

किसानों के लिए लाभदायक बने कृषि - डा. पं

किसानों के लिए लाभदायक बने कृषि - डा. पंत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस सम्पन्न
पंतनगर। 12 नवम्बर, 2009। तीन-दिवसीय राज्य स्तरीय उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस का आज समापन हुआ। गांधी हाल में अपराह्न से आयोजित समापन समारोह के मुख्य अतिथि दून विश्वविद्यालय के कुलपति डा. गिरजेश पंत थे जबकि समारोह की अध्यक्षता पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बी.एस. बिष्ट ने की। इस अवसर पर कृषि धन के निदेशक, डा. जी.के. गर्ग, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के पूर्व सलाहकार श्री आर. शाह तथा उत्तराखण्ड काउंसिल आॅफ सांइस एण्ड टैक्नोलाॅजी के निदेशक, डा. राजेन्द्र डोभाल जी मंचासीन थे। डा. गिरजेश पंत ने अपने विचारोत्तेजक सम्बोधन में कहा कि कृषि को वास्तव में उत्पादक बनाने हेतु तथा किसानों के लिए लाभदायक बनाने हेतु सरकार की सहायता आवश्यक है तभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी किसानों की हितार्थ बन पायेगी। डा. पंत ने कहा कि प्रथम हरित क्रांति के समय सरकार को यह भान था कि खाद्यान्न में आत्म निर्भर हुए बिना देश की आजादी को बनाये रखना मुश्किल होगा। इस लिए कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी मशीनरी का पूरा सहयोग रहा। किन्तु अब औद्योगिक क्षेत्र की ओर अधिक ध्यान के कारण कृषि की ओर सरकारी सहयोग कम हुआ है। उन्होंने कहा कि आज की विज्ञान एवं तकनीक कृषि व्यवसायिकों की ओर अधिक केन्द्रित है जिससे किसानों को अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है तथा कृषि उनके लिए आर्थिक रूप से लाभदायक नहीं हो पा रही है। डा. पंत ने सरकारी सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि आज 40 प्रतिशत किसान मौका मिलने पर खेती को छोड़ने के लिए तैयार हैं। मुख्य अतिथि ने कहा कि जब तक परिस्थितियों को नहीं बदला जायेगा तब तक दूसरी हरित क्रांति का प्रादुर्भाव होना मुश्किल होगा। कुलपति डा. बी.एस. बिष्ट ने अपने सम्बोधन में कहा कि उत्तराखण्ड के सभी विज्ञान एवं तकनीकी संस्थानों को आपसी सहयोग के साथ नये क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों की एक टास्क फोर्स बनाये जाने की आवश्यकता है। जो प्रदेश के विभिन्न नीतियों के निर्माण में अपने ज्ञान का योगदान कर सकें। डा. आर. शाह ने कहा कि यह विज्ञान कांग्रेस अन्य इस प्रकार के सम्मेलनों से अलग है क्योंकि इसमें प्रौद्योगिकी को भी उचित स्थान दिया गया है। उन्होंने विज्ञान द्वारा सामाजिक जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन का समाज व कृषि पर पड़ रहे प्रभाव के अध्ययन की भी आवश्यकता बतायी। समापन समारोह में निदेशक, कृषि धन, जालना के निदेशक, डा. जी.के. गर्ग ने चैथे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस को सफल बताते हुए आशा व्यक्त की कि उत्तराखण्ड राज्य में विज्ञान की गुणवत्ता एवं युवा वैज्ञानिकों के उत्साह को देखते हुए राज्य का भविष्य उज्जवल होगा। इस कार्यक्रम मंे देश के विभिन्न संस्थानों से आये हुए वैज्ञानिकों द्वारा कांग्रेस मंे दिये गये शोध प्रस्तुतिकरण के आधार पर कुल 46 वैज्ञानिकों को पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के निदेशक, डा. राजेन्द्र डोभाल ने तीन दिनांे तक चले कांग्रेस का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए इसमंे हुयी प्रमुख संस्तुतियों के बारे में बताया। अधिष्ठाता मानविकी, डा. बी.आर.के. गुप्ता ने कार्यक्रम के प्रारम्भ में सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष, आणविक जीव विज्ञान एवं आनुवांशिक प्रौद्योगिकी एवं कांग्रेस के आयोजन सचिव, डा. अनिल कुमार गुप्ता ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

चतुर्थ राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस


वैज्ञानिक राज्य के चहुंमुखी विकास में विशेष भूमिका निभायें: राज्यपाल
चतुर्थ राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस
पंतनगर 10 नवम्बर, 2009 महामहिम राज्यपाल श्रीमती मारग्रेट अल्वा ने मंगलवार को पंतनगर में आयोजितचतुर्थ राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस का उद्घाटन करने के पश्चात कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के युवा वैज्ञानिकों राज्य के विकास में आगे आये। राज्य को जैविक विविधताओं का केन्द्र बताते हुए उन्होंने प्रदेश में कृषि विकास के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करने पर बल दिया। उन्होंने वर्तमान समय में खाद्यान्न व पर्यावरण सुरक्षा को गंभीर मुद्दा बताते हुए विभिन्न विभागों को एकजुट होकर कारगर योजनाओं पर कार्य करने पर जोर दिया। उन्होंने इस दिशा में उत्तराखण्ड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकोस्ट) के प्रयासों की सराहना करते हुए वैज्ञानिकों से प्रदेश के चहुंमुखी विकास में विशेष भूमिका निभाने की अपेक्षा की। राज्यपाल ने देश में हरित क्रांति लाने में विशेष भूमिका निभाने वाले पंत विवि के वैज्ञानिकों से भी दूसरी हरित क्रांति का ध्वजवाहक बनने तथा श्वेत क्रांति, पीली क्रांति व नीली क्रांति के क्षेत्र में भी कीर्तिमान स्थापित करने की अपेक्षा की। उन्होंने राज्य में प्रसंस्करण इकाइयों के विस्तार पर भी बल दिया। इसके साथ ही उन्होंने स्पेशल इकोनोमिक जोन के तहत उपजाऊ भूमि के उपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की वकालत की। जी.बी.पंत विवि के कुलपति डॉ. बी.सी. बिष्ट ने राज्यपाल श्रीमती अल्वा सहित सभी वैज्ञानिकों का स्वागत किया। उन्होंने यूकोस्ट द्वारा आयोजित इस समारोह को युवा वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन व प्रदेश के कृषि क्षेत्र के समग्र विकास का माध्यम बताते हुए राज्यपाल श्रीमती अल्वा का संक्षिप्त जीवन-परिचय प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने आगामी 17 नवम्बर से शुरू होने वाले विवि के स्थापना दिवस समारोह तथा विवि में संचालित शिक्षण, शोध व प्रसार कार्यक्रमों की जानकारी भी दी। यूकोस्ट के निदेशक डॉ. राजेन्द्र डोभाल ने इस सम्मेलन में प्रस्तुत शोध पत्रों को विकासपरक व समारोह को प्रदेश विकास का माध्यम बताया। वैज्ञानिकों द्वारा लिखित चार पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम के अन्त में अधिष्ठाता विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय डॉ. बी.आर.के. गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

बुधवार, 4 नवंबर 2009

दो दिवसीय वैज्ञानिक कार्यषाला


पर्वतीय क्षेत्र के औद्योगिक एवं पर्यावरण संरक्षण पर दो दिवसीय वैज्ञानिक कार्यषाला
राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप स्थापित हो लघु औद्योगिक इकाईयां: डाॅ निषंक
देहरादून, 04 नवम्बर, मुख्यमंत्री डाॅ. रमेष पोखरियाल निषंक ने वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में ‘पर्वतीय क्षेत्र के औद्योगिक एवं पर्यावरण संरक्षण’ पर आयोजित दो दिवसीय कार्यषाला का षुभारम्भ करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड की परिस्थितियांे को देखते हुए यहां की पृष्ठभूमि के अनुरूप उद्योग से जुड़ी संभावनाओं को तलाष जाय। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में ठोस कार्ययोजना के तहत लघु औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की आवष्यकता है। जिससे युवाओं का पलायन रोका जा सके। लद्यु औद्योगिक इकाइयां यहां के औद्योगिक, आर्थिक एवं सामाजिक दिषा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। मुख्यमंत्री डाॅ. निषंक ने कहा कि कार्यषाला प्रदेष की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास को प्रोत्साहन देने के लिए महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने वैज्ञानिकों से अपील की, कि यहां के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप कम समय और कम श्रम में स्थानीय उत्पाद पर आधारित रोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजन करने वाली ग्रामीण उद्योगों का चिन्हीकरण करायें, ताकि यहां के लोगों में उद्यमिता विकास की भावना पैदा हो और युवाओं के पलायन को रोकने में सक्षम हो। उन्होंने कहा कि पलायन से हम पर दोहरा संकट आने की संभावना है। उन्होंने कहा कि दो अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से लगे उत्तराखण्ड के युवाओं का पलायन रोकना आवष्यक है। लघु उद्योगों के विकास से जहां पलायन पर नियंत्रण होगा, वहीं समन्वित एवं सुनियोजित विकास से उत्तराखण्डवासियों की सामाजिक, औद्योगिक व आर्थिक प्रगति होगी। इसके लिए उन्होंने वैज्ञानिकों से आधुनिकतम एवं परिष्कृत औद्योगिकी यहां के परिपे्रक्ष्य में संस्तुति करने की अपेक्षा की। डाॅ. निषंक कहा कि हिमालयी राज्य होने के कारण यहां पर होने वाले प्रभाव देष को प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की जवानी और पानी राष्ट्र को समर्पित हैं, यहां के युवा सेना में रहकर देष की रक्षा में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहे है तथा 65 प्रतिषत भू-भाग वन क्षेत्र होने के कारण यहां के लोगों का पर्यावरण सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप विकास की चिंता करने की वैज्ञानिकों से अपील की। उन्होंने कहा कि प्रदेष को आदर्ष राज्य बनाने लिए ही उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ है। यहां पर जड़ी बूटियों की अपार संभावनाएं है, किन्तु उसके वैज्ञानिक कृषिकरण एवं विपणन के अभाव में इसका समुचित उपयोग नही हो पा रहा है। इस क्षेत्र में भी वैज्ञानिकों से सुझाव आमंत्रित किये। उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड भारतीय संस्कृति का प्राण है और यहां उपलब्ध संसाधनों एवं जैव विविधता को मध्यनजर रखते हुए उसके अनुरूप तकनीकी प्रयोग में लानी होगी। उन्होंने कहा कि यहां साहसिक, जल क्रीड़ा, की असीम संभावनाएं है तथा पर्यावरण संतुलन वाली औद्योगिक इकाईयां स्थापित करने की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप लघु औद्योगिक इकाईयों की स्थापना से ऐसा वातावरण बने जो, प्रभावी संदेष के रूप में पूरे देष में फैले। उन्होंने हिन्दी साहित्य विज्ञान परिषद द्वारा वैज्ञानिक अनुसंधानों एवं षोधों को हिन्दी पत्रकारिता के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने के लिए हिन्दी विज्ञान साहित्य परिषद द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। मुख्यमंत्री द्वारा गजानन काले एवं रामप्रसाद द्वारा लिखित ‘पदार्थ अभिलक्षणन की प्रगत विधियां’ पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने वैज्ञानिक शोधों के हिन्दी भाषा के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने वाली गतिविधियों की सराहना की। इस अवसर पर भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई द्वारा संचालित हिन्दी भाषा की विज्ञान गोष्ठियों एवं साहित्य के प्रकाषन की प्रषंसा की। प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार भारत सरकार डाॅ. आर. चिदम्बरम ने कहा कि परिषद का निरंतर प्रयास रहा है, कि विज्ञान को हिन्दी में साहित्य के रूप में आमजन तक पहुंचाया जाय। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों के विकास की बहुत आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक विकास के लिए ऊर्जा की आवष्यकता है, जिसके लिए उन्होंने अन्य स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने नाभिकीय ऊर्जा एवं घराट निर्माण, जैसे विकल्पों से ऊर्जा उत्पादन की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिक ग्रामीण क्षेत्र के उद्योगों के लिए नई तकनीकी विकसित कर रहे है, जिससे ग्रामीण उद्योगों को आधुनिकता प्रदान कर ग्रामीण जीवन स्तर को उठाने में मदद मिलेगी। इस अवसर पर महानिदेषक आई.सी.एफ.आर.आई. डाॅ. जी.एस.रावत, निदेषक वन अनुसंधान संस्थान डाॅ.एस.एस.नेगी, निदेषक यूकाॅस्ट डाॅ. राजेन्द्र डोभाल, निदेषक जैव चिकित्सा डाॅ. कृष्णा वी.सैनिष, हेस्को संस्थापक डाॅ. अनिल जोषी ने भी हिन्दी विज्ञान परिषद के विज्ञान को आम जन की भाषा के रूप में प्रस्तुत करने के प्रयासों की सराहना की। कार्यषाला के तकनीकी सत्र में अपर निदेषक उद्योग सुधीर चन्द्र नौटियाल तथा सी.आई.आई के प्रतिनिधि राकेष ओबराॅय ने भी पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग की संभावनाओं पर विस्तृत प्रकाष डाला।

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

हिमालयी राज्यों क सम्मेलन


पर्वतीय विकास मंत्रालय का गठन हो: निषंक
देहरादून 30 अक्टूबर
हिमालयी राज्यों के सर्वांगीण विकास के लिए अलग से केन्द्रीय पर्वतीय विकास मंत्रालय का गठन किया जाय। जिसमें पृथक नियोजन नीति एवं बजट का प्राविधान भी हो। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डाॅ. रमेष पोखरियाल ‘‘निषंक‘‘ ने षिमला में आयोजित हिमनद, जलवायु परिवर्तन, जीविकोपार्जन पर हिमालयी राज्यों के सम्मेलन के अवसर पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों के लिए एक पृथक वन एवं कृषि नीति की आवष्यकता है। डा. निषंक ने मुख्यमंत्री डा. निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड की वन सम्पदा, जल सम्पदा एवं पर्यावरणीय सम्पदा पूरे देष एवं विष्व के लिए है। जिसके लिए केन्द्र सरकार को राज्य को इनके संरक्षण-संवर्द्धन के लिए आर्थिक प्रतिपूर्ति करनी चाहिए। उत्तराखण्ड के वन पूरे देष एवं दुनिया को प्राण वायु आक्सीजन प्रदान करते हैं और केन्द्र सरकार उत्तराखण्ड को प्रतिवर्ष 10 हजार करोड़ रूपये की प्रतिपूर्ति करे। उत्तराखण्ड में हिमालय के अनुकूल ईको-टूरिज्म, आयुर्वेद योग टूरिज्म एवं लघु खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव हमारी अमूल्य जड़ी-बूटियों पर भी पड़ रहा है। केन्द्रीय वन अधिनियम के अनुपालन में पर्वतीय क्षेत्र की जनता अपने सामान्य सड़क-बिजली-पानी के अधिकारों से भी वंचित हो जाती है। विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं मैदान को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, जो पहाड़ों पर अव्यवहारिक होती हैं। डा. निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड, हिमाचल व अन्य हिमालयी राज्य भी इससे अछूते नहीं है। जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण संरक्षण की चुनौतियों ने सर्वाधिक हमारे परिवेश पर प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा कि हिमालय प्रभावित होगा तो पूरा देश प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र भारत वर्ष की एक बड़ी आबादी का जीवन श्रोत है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड के वन दस हजार करोड़ रूपये से अधिक मूल्य की आक्सीजन देश को देते हैं। उन्होंने मांग की कि देश की आर्थिक खुशहाली व प्रगति के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण व पारिस्थिकी संतुलन बनाए रखने के लिए केन्द्र सरकार को अलग से नीति बनानी चाहिए। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने यह भी बताया कि ग्लेशियर तथा उनसे निकलने वाली नदियां समूचे उत्तर भारत में पानी का प्रमुख श्रोत हैं और इनके प्रभावित होने का अर्थ पानी की गम्भीर समस्या का उत्पन्न होना है। उन्होंने ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 9000 से अधिक ग्लेशियरों में से 1439 ग्लेशियर उत्तराखण्ड में हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में 500 घन किमी. ताजा जल संचित होता है। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग का हिमनदों पर प्रभाव व जलवायु परिवर्तन ऐसी समस्या है जिसका समाधान ढूंढने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवन शैली में परिवर्तन, ग्रीन-हाउस गैसांे के उत्सर्जन को कम, वनों को बढ़ाकर ही हम ग्लोबल वार्मिंग को रोक सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन समाधानों का हिमालयी क्षेत्र की जनता की प्रगति-उन्नति पर प्रभाव न पड़े यह भी हमें ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा कि अधिक वनाच्छादित क्षेत्र वाले राज्य में जनता को जंगल से दूर करके कोई नीति कारगर नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड अपनी वन भूमि से केवल चुगान भी करे तो वह सालाना लगभग डेढ़ हजार करोड़ से दो हजार करोड़ की आय कर सकता है। मुख्यमंत्री ने पिछले वर्षों में तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन और हिमालयी राज्यों में उसके फलस्वरूप उत्पन्न चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा भी की।

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

माइग्रेन की वजह से दिमाग की बनावट में बदलाव

माइग्रेन की वजह से दिमाग की बनावट में बदलाव
देहरादून 25 अक्टूबर
माइग्रेन से पीड़ित व्यक्ति की दिमागी संरचना अन्य लोगों से थोड़ी अलग होती है। यह अंतर खासतौर पर दिमाग के कॉर्टेक्स क्षेत्र में होता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के बाद यह जानकारी दी है।


हालाँकि शोध में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि इस अंतर की वजह से किसी को माइग्रेन की बीमारी होती है या फिर माइग्रेन की वजह से दिमाग की बनावट में बदलाव आता है।

शोधकर्ता टीम ने ऐसे 24 लोगों की ब्रेन स्कैनिंग की, जो लंबे समय से माइग्रेन से जूझ रहे थे। उनके साथ ही 12 स्वस्थ लोगों के ब्रेन की स्कैनिंग की गई। उन्होंने पाया कि माइग्रेन पीड़ितों का कार्टेक्स यानी दिमाग का वह हिस्सा जो दर्द, स्पर्श या तापमान जैसी संवेदनाओं को महसूस करता है, अन्य लोगों की तुलना में 21 फीसदी मोटा होता है।

शोध का नेतृत्व करने वाली मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल की डॉ. नौशील हैदजीखनी ने बताया कि सबसे ज्यादा अंतर सिर और चेहरे से जुड़ी सेंसरी इंफॉर्मेशन की प्रोसेसिंग के लिए जिम्मेदार कार्टेक्स के हिस्से में देखने को मिला। उन्होंने कहा कि अध्ययन से माइग्रेन की गंभीरता भी सामने आई है। इस बीमारी को हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि यह दिमाग में बदलाव ला सकती है।

डॉ. नौशीन कहती हैं कि एक संभावना यह हो सकती है कि कार्टेक्स जैसे दिमाग के सेंसरी फील्ड में लंबे समय तक बार-बार उत्तेजना या उकसाव से वह मोटा होने लगता है। दूसरी संभावना यह हो सकती है कि जिन लोगों का कार्टेक्स मोटा होता है उन्हें आगे चलकर माइग्रेन का सामना करना पड़ता हो।

यह है माइग्रेन : माइग्रेन एक प्रकार का सिरदर्द है, जो आधे सिर में होता है। इसके साथ उल्टी होने की शिकायतें भी होती है। महिलाओं में यह बीमारी पुरुषों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होती है।

कई लोगों में यह बीमारी आनुवांशिक होती है। डॉ. नौशीन कहती हैं कि हम माइग्रेन के कारणों को जितना ज्यादा समझ सकेंगी, इसके इलाज के लिए उतनी ही प्रभावी दवाइयाँ बनाई जा सकेंगी।

ग्लोबल वॉर्मिंग की पहली ऑफिशल विस्थापित कम्युनिटी

देहरादून 25 अक्टूबर
पापुआ न्यू गिनी दुनिया
के नक्शे से जल्दी ही गायब हो जायेगा। क्योकि इस छोटे से मुल्क में कुछ ऐसा हो रहा है, जो
हम सबके लिए खतरे की बड़ी घंटी है। जिसे हमने अब भी नहीं सुना तो शायद बहुत देर हो जाएगी।

ऑस्ट्रेलिया के पास मौजूद इस देश का एक पूरा द्वीप डूबने वाला है। कार्टरेट्स नाम के इस आइलैंड की पूरी आबादी दुनिया में ऐसा पहला समुदाय बन गई है जिसे ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अपना घर छोड़ना पड़ रहा है - यानी ग्लोबल वॉर्मिंग की पहली ऑफिशल विस्थापित कम्युनिटी। जिस टापू पर ये लोग रहते हैं वह 2015 तक पूरी तरह से समुद्र के आगोश में समा जाएगा

उत्तराखण्ड में 400 साल पुराना महावृक्ष

उत्तराखण्ड में 400 साल पुराना महावृक्ष
देहरादून 25 अक्टूबर एशिया में चीड़ एवं देवदार प्रजाति के वृक्षों में उत्तराखंड के जंगलों का दबदबा रहा है। इसके साथ ही मोटाई में एशिया में दूसरे नंबर का देवदार वृक्ष भी चकराता वन प्रभाग की कनासर रेंज में ही है। उत्तरकाशी के टौंस वन प्रभाग अंतर्गत कोठिगाड़ रेंज के बालचा वन क्षेत्र जनपद देहरादून की सीमांत तहसील त्यूणी से सटा हुआ है। देवदार के इस महावृक्ष की मोटाई (गोलाई) 8.25 मीटर और ऊंचाई 48 मीटर है। इस वृक्ष की आयु 400 साल से अधिक बताई जाती है। वर्ष 1994 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इसे महावृक्ष के रूप में पुरस्कृत किया गया था। भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के म्यूजियम में देवदार वृक्ष की जो सबसे अधिक गोलाई की अनुप्रस्थ काट प्रदर्शित की गई है, वह वृत भी इसी खंड में स्थित थी, जिसके अवशेष अब भी मौजूद हैं। देहरादून जिले के चकराता वन प्रभाग अंतर्गत कनासर रेंज में स्थित देवदार का एक और वृक्ष महावृक्ष बनने की होड़ में अपना आकार फैला रहा है। चकराता-त्यूणी मोटर मार्ग पर कोटी-कनासर वन खंड में स्थित इस देवदार वृक्ष की मोटाई (गोलाई) 6.35 मीटर है। इस वृक्ष की अनुमानित आयु 600 साल से अधिक बताई जाती है। देवदार एवं चीड़ प्रजाति के वृक्षों की चाहे ऊंचाई की बात रही हो या मोटाई की, महावृक्ष का खिताब पाने में पूरे एशिया में उत्तराखंड के जंगलों का ही दबदबा रहा है। एशिया के सबसे ऊंचे चीड़ महावृक्ष में भी उत्तराखंड राज्य के टौंस वन प्रभाग ने अपनी पहचान बनाई।

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

हिमालय की संवदेनशीलता से प्रभावित होगी पूरी दुनिया


हिमालय की संवदेनशीलता से प्रभावित होगी पूरी दुनिया
देहरादून 22 अक्टूबर। हिमालय की संवदेनशीलता पूरी दुनिया को प्रभावित करती है, क्योंकि हिमालय पर्यावरण संतुलन, जल संसाधन तथा देश की सुरक्षा का प्रहरी है तथा भूकम्प की दृष्टि से संवदेनशील होने के कारण इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सबकी है। यह बात मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने वाडिया इंस्टिट्यूट में भूकम्प का पूर्वानुमान पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कही। डा. निशंक ने कहा कि हिमालय की संवेदनशीलता प्रदेश से ही नहीं पूरे विश्व को प्रभावित करती है। इसलिए इसकी सुरक्षा विश्व समुदाय की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि भूकम्प के कारण जनहानि के साथ-साथ अन्य क्षतियां भी होती हैं तथा प्रकृति के असंतुलन से दैवीय आपदाएं जन्म लेती हैं। उन्होंने कार्यशाला में प्रतिभागी वैज्ञानिकों से अपील की, कि इस कार्यशाला में प्रकृति से आत्मीयता एवं उसके वैज्ञानिक दोहन पर गम्भीरता से मंथन किया जाय। उन्होंने कहा कि मंथन में आये बहुमूल्य विचारों को राज्य सरकार अपने नियोजन में शामिल करेगी। मुख्यमंत्री डा. निशंक ने कहा कि भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता को अधिक महत्व दिया गया है तथा प्रकृति द्वारा प्रदत्त नैसर्गिक सौंदर्यता ने देश ही नहीं अपितु विदेशियों को भी प्रदेश की ओर आकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में प्रकृति से प्रेम की परम्परा रही है, और यही कारण है कि यहां के विभिन्न त्योहार, पेड़-पौधों, फसल तथा पशुओं की पूजा से जुड़े हुए हैं। वृक्षारोपण, गौ-पूजा जैंसी हमारी परम्परायें प्रकृति के संतुलन के लिए बहुमूल्य है किन्तु आधुनिकता की दौड़ में इन परम्पराओं को लोग नहीं अपना रहे हैं, जिससे भूस्खलन, बादल फटने जैसी अनेक दैवीय आपदायें जन्म लें रही हैं। उन्हांेने कहा है कि अच्छी परम्पराओं का वैज्ञानिक ढंग से प्रचार प्रसार कर प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है, उन्होंने इसके लिए वैज्ञानिकों का आह्वान किया। उन्होंने वैज्ञानिकों को सम्बोधित करते हुए विकास की धुरी बनकर प्रदेश एवं देश के चहुॅमुखी विकास में आगे आयें। उन्होंने वैज्ञानिकों का अभिनन्दन करते हुए शोध कार्यों की सफलता हेतु शुभकामना दी। इस अवसर पर अध्यक्ष विधान सभा हरबंस कपूर ने कहा कि यह सौभाग्य का विषय है, कि विश्व स्तर के इस संस्थान मंे भूकम्प के पूर्वानुमान जैसे विषय को लेकर देश के वैज्ञानिक एक जगह एकत्र हुए हैं। उन्होंने कहा कि भूकम्प नियत्रंण मनुष्य के हाथ में नहीं है, किन्तु इसकी पूर्व सम्भावनाओं को शोध आदि से प्राप्त कर लोगों को इससे सचेत कर नुकसान कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं से संवेदनशील है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह संस्थान प्रदेश ही नहीं अपितु विश्व समुदाय की सेवा करने में भी सहायक होगा। श्री कपूर ने कहा कि ग्लेशियर का पिघलना पूरे देश की चिन्ता का विषय है तथा इनके सुरक्षित होने से मानव समाज को पर्याप्त मात्रा में पानी की कमी से रूबरू नहीं होना पडे़गा। उन्हांेने कहा कि हमारे प्रदेश के लोग प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण हेतु पूर्व से ही संवेदनशील हैं। प्रदेश का 65 प्रतिशत वन भू-भाग होने के कारण विकास की गति को बनाने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधन की सुरक्षा करने का हमारा दोहरा दायित्व है। इस कारण कार्यशाला में आये विचार राज्य के परिपे्रक्ष्य में उपयोगी होंगे। उन्होंने राज्य के परिप्रेक्ष्य में भूकम्प पर जानकारी संकलन का आह्वान भी किया। पूर्व सचिव समुद्री विकास भारत सरकार पदमश्री डा. हर्ष के. गुप्ता ने कहा कि भूकम्प की भविष्य वाणी से जन, पशु तथा धनहानि को कम किया जा सकता है। इस महत्वपूर्ण विषय को लेकर यह कार्यशाला मानव समाज के कल्याण के लिए बहुमूल्य होगी। उन्होंने मुख्य अतिथि एवं अध्यक्ष विधान सभा की उपस्थिति को गरिमामय बताते हुए कार्यशाला की सफलता की कामना की। इस अवसर पर वरिष्ठ वैज्ञानिक वाडिया संस्थान ए. के. दुबे ने उपस्थित वैज्ञानिकों का साधूवाद किया। इससे पूर्व वाड़िया इंस्टिट्यूट के निदेशक डा. वी. राज अरोड़ा ने कार्यशाला के उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यशाला में मुख्य सचिव इन्दु कुमार पाण्डे, यू-कोस्ट के निदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल, यू-सैक के निदेशक एम.एम. किमोठी, निदेशक मौसम विभाग डा. आनन्द शर्मा, पूर्व निदेशक वाड़िया इंस्टिट्यूट डा. वी. सी. ठाकुर, डा. एन. एस. द्विवेदी, डा.एस.सी.डी. शाह सहित अनेक वैज्ञानिक उपस्थित थे।

Scientific Bodies

Scientific Bodies

Science Centres

· Centre for Cooperation in Science and Technology among Developing Societies (CCSTDS)

· Centre for Marine Living Resources and Ecology (CMLRE)

· Indian National Centre for Ocean Information Services (INCOIS)

· Inter-University Centre for Astronomy and Astrophysics (IUCAA)

· Krishi Vigyan Kendra (KVK), Babhaleshwar, Maharashtra

· Krishi Vigyan Kendra (KVK), Baramati, Maharashtra

· Krishi Vigyan Kendra (KVK), Port Blair, Andaman and Nicobar

· National Centre for Medium Range Weather Forecasting (NCMRWF)

· Nuclear Science Centre

· Orissa Space Application Center (ORSAC)

· Patent Facilitating Centre (PFC)

· Water Technology Centre for Eastern Region (WTCER)

Research Institutions/Laboratories

· Agharkar Research Institute (ARI)

· Ahmedabad Textile Industry's Research Association (ATIRA)

· Atomic Minerals Directorate (AMD)

· Bhabha Atomic Research Centre (BARC)

· Birbal Sahni Institute of Palaeobotany

· Bombay Textile Research Association (BTRA)

· Bose Institute, Kolkata

· Central Institute for Research on Buffaloes (CIRB)

· Central Institute of Mining and Fuel Research (CIMFR)

· Central Power Research Institute (CPRI)

· Central Scientific Instruments Organisation (CSIO)

· Central Soil and Materials Research Station (CSMRS)

· Central Water and Power Research Station (CWPRS)

· Centre for Advanced Technology (CAT)

· Centre for Development of Advanced Computing (C-DAC)

· Centre for Development of Telematics (C-DOT)

· Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostics (CDFD)

· Centre for Liquid Crystal Research (CLCR)

· Centre for Materials for Electronics Technology (C-MET)

· Council of Scientific and Industrial Research (CSIR)

· Defence Research and Development Organisation (DRDO)

· Forensic Science Laboratory, Haryana

· Heavy Water Board (HWB)

· Hindustan Aeronautics Limited (HAL)

· Homoeopathic Pharmacopoeia Laboratory (HPL)

· India Meteorological Department (IMD)

· Indian Academy of Sciences

· Indian Association for the Cultivation of Science (IACS)

· Indian Council of Agricultural Research (ICAR)

· Indian Institute of Astrophysics (IIA)

· Indian Institute of Remote Sensing (IIRS)

· Indian Institute of Tropical Meteorology (IITM)

· Indian Jute Industries' Research Association (IJIRA)

· Indian National Academy of Engineering (INAE)

· Indian Rare Earths Limited

· Indian Rubber Manufacturers Research Association (IRMRA)

· Indian Space Research Organisation (ISRO)

· Indian Statistical Institute (ISI), Bangalore

· Indian Statistical Institute (ISI), Calcutta

· Indian Statistical Institute (ISI), Delhi

· Indira Gandhi Centre for Atomic Research (IGCAR)

· Institute for Plasma Research (IPR)

· Institute of Bioresources and Sustainable Development (IBSD)

· Institute of Genomics and Integrative Biology (IGIB)

· Institute of Life Sciences

· Institute of Mathematical Sciences

· Institute of Physics (IOP)

· Inter University Consortium for Department of Atomic Energy Facilities ((IUC-DAEF), Indore

· Jawaharlal Nehru Aluminium Research Development and Design Centre (JNARDDC)

· Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research (JNCASR)

· Man-Made Textiles Research Association (MANTRA)

· Media Lab Asia

· Mehta Research Institute of Physics and Mathematical Physics

· National Academy of Agricultural Research Management (NAARM)

· National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories (NABL)

· National Brain Research Centre (NBRC)

· National Centre for Agricultural Economics and Policy Research (NCAP)

· National Centre for Antarctic and Ocean Research (NCAOR)

· National Centre for Biological Sciences (NCBS)

· National Centre for Cell Sciences (NCCS)

· National Centre For Plant Genome Research (NCPGR)

· National Institute of Design (NID)

· National Institute of Hydrology (NIH), Roorkee

· National Institute of Immunology (NII)

· National Institute of Ocean Technology

· National Institute of Rock Mechanics (NIRM)

· National Remote Sensing Agency (NRSA)

· National Research Centre for Grapes (NRCG)

· National Research Laboratory for Conservation of Cultural Property (NRLC)

· National Test House

· Northern India Textile Research Association (NITRA)

· Nuclear Fuel Complex

· Ocean Science and Technology Cell (OSTC)

· Paddy Processing Research Centre (PPRC)

· Physical Research Laboratory (PRL)

· Rajiv Gandhi Centre for Biotechnology (RGCB)

· Raman Research Institute

· Regional Testing Center (Southern Region), Chennai

· Regional Testing Centre (Eastern Region), Kolkata

· Research Designs and Standards Organisation (RDSO)

· Rural Technology Institute, Gujarat (RTIG)

· Saha Institute of Nuclear Physics

· Satyendra Nath Bose National Centre for Basic Sciences

· Society for Applied Microwave Electronic Engineering and Research (SAMEER)

· South India Textile Research Assocaition (SITRA)

· Synthetic and Art Silk Mills' Research Association (SASMIRA)

· Tata Institute of Fundamental Research (TIFR)

· Tata Memorial Centre (TMC)

· Variable Energy Cyclotron Centre (VECC)

· Wadia Institute of Himalayan Geology

Others

· 5th International Conference on Biopesticides: Stakeholders’ Perspective (ICOB-V 2009)

· Alagappa Chettiar College of Engineering and Technology (ACCET)

· Andhra Pradesh Technology Development and Promotion Centre (APTDC)

· Asian and Pacific Centre for Transfer of Technology (APCTT)

· Biju Patnaik University of Technology (BPUT)

· Biodiversity and Biotechnology Department, Madhya Pradesh

· Biodiversity Information System (BIS)

· Biotechnology Department, Himachal Pradesh

· Biotechnology Department, West Bengal

· Bio-Technology Information System

· Biotechnology Park, Lucknow

· Botanical Survey of India (BSI)

· Cochin University of Science And Technology (CUSAT)

· College of Engineering and Technology, Bhubaneshwar

· College of Engineering, Chengannur

· Consortium on Micropropagation Research and Technology Development

· Council of Science and Technology, Uttar Pradesh

· Department of Bio-Technology (DBT)

· Department of Biotechnology, Barkatullah University

· Department of Electronics, Cochin University of Science and Technology

· Department of Microbiology and Biotechnology Centre, Maharaja Sayajirao University of Baroda (MSUB)

· Department of Science and Technology (DST)

· Department of Scientific and Industrial Research (DSIR)

· Directorate of Forensic Science (DFS)

· Dr B R Ambedkar National Institute of Technology, Jalandhar

· e-Biotech Commerce

· Farm Net Asia

· Geological Survey of India (GSI)

· Government College of Engineering (GCE), Salem

· Government College of Engineering, Aurangabad

· Government College of Science, Raipur

· Government Holkar Science College, Indore

· Govind Ballabh Pant Engineering College

· Gujarat Science City

· Gujarat State Biotechnology Mission (GSBTM)

· Indian Biosafety Rules and Regulations

· Indian GMO Research Information System (IGMORIS)

· Indian Medlars Centre (INDMED)

· Information Technology and Biotechnology Department, Karnataka

· Information Technology Department, Chandigarh

· Information Technology Department, Himachal Pradesh

· Institute of Technology, Banaras Hindu University

· Institute of Technology, Guru Ghasidas University

· Jawaharlal Nehru Technological University (JNTU)

· Jorhat Engineering College

· Madan Mohan Malaviya Engineering College (MMMEC)

· Madhya Pradesh Council of Science and Technology (MPCOST)

· Malaviya National Institute of Technology, Jaipur (MNIT)

· Maulana Azad National Institute of Technology, Bhopal

· Mission Reach

· Model Engineering College (MEC)

· Motilal Nehru National Institute of Technology (MNNIT), Allahabad

· Muzaffarpur Institute of Technology

· Nano Mission

· National Academy of Sciences

· National Agricultural Technology Project (NATP)

· National Atlas and Thematic Mapping Organisation (NATMO)

· National Good Laboratory Practice Compliance Monitoring Authority

· National Institute of Industrial Engineering (NITIE)

· National Institute of Science Communication and Information Resources (NISCAIR)

· National Institute of Technology, Agartala

· National Institute of Technology, Calicut

· National Institute of Technology, Durgapur

· National Institute of Technology, Hamirpur

· National Institute of Technology, Jamshedpur

· National Institute of Technology, Kurukshetra

· National Institute of Technology, Patna

· National Institute of technology, Raipur

· National Institute of Technology, Rourkela

· National Institute of Technology, Silchar

· National Institute of Technology, Srinagar

· National Institute of Technology, Surathkal

· National Institute of Technology, Tiruchirappalli

· National Institute of Technology, Warangal

· National Science and Technology Entrepreneurship Development Board (NSTEDB)

· National Science and Technology Management Information System (NSTMIS)

· Natural Resources Data Management System (NRDMS)

· Networking of Social Scientists

· North Eastern Regional Institute of Science and Technology (NERIST)

· Office of the Principal Scientific Adviser

· Patent Information Services

· Patna Science College

· Pushpa Gujral Science City

· Rajiv Gandhi Institute of Technology (RIT), Kottayam

· Rajiv Gandhi Technical University (RGTU)

· Sant Longowal Institute of Engineering and Technology (SLIET)

· Sardar Vallabhbhai National Institute of Technology, Surat

· Science and Technology Department, Gujarat

· Science and Technology Department, Lakshadweep

· Science and Technology Department, Rajasthan

· Technology Innovation Management and Entrepreneurship Information Service (TIMEIS)

· United Nations Educational Scientific and Cultural Organisation (UNESCO)

· Uttar Pradesh Technical University (UPTU)

· Vigyan Prasar

· Visvesvaraya National Institute of Technology (VNIT), Nagpur

· Visveswaraiah Technological University (VTU)

· West Bengal University of Technology (WBUTech)

Zoological Survey of India (ZSI)