प्रधानमंत्री ने पुरानी मांगें दोहराईं
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोपेनहेगन के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में भारत की पुरानी मांगें दोहराते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जो दोषी नहीं हैं, उन्हें उसकी सज़ा नहीं मिलनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि एक तो संयुक्त राष्ट्र के क़ायदों के अनुरुप समझौता होना चाहिए और दूसरे बाली में बनी सहमति को अनदेखा नहीं करना चाहिए.
बाली में बनी सहमति के अनुसार जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए ज़िम्मेदारियाँ देशों की क्षमताओं के अनुरुप तय होनी चाहिए.
उन्होंने अपने भाषण में कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर तीन सबक सीखने को मिले हैं.
पहले सबक का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, "रियो सम्मेलन या क्योटो संधि के समय हमारे सामने कार्रवाई की जो योजना रखी गई थी वह इस समय बहुत नहीं बदली है. इसीलिए हमें बाली कार्ययोजना पर अमल करना चाहिए जिससे कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की संधि का पालन कर सकें."
उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में जो भी तय हो वह बाली कार्य योजना के तहत ही तय होना चाहिए.
इस सम्मेलन का चाहे जो भी परिणाम निकले भारत ने अपने लिए कुछ लक्ष्य तय कर लिए हैं और वह इनका पालन करता रहेगा
मनमोहन सिंह
दूसरे सबक के रुप में उन्होंने कहा कि क्योंटो संधि की क़ानूनी बाध्यता को बरकरार रखना चाहिए.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विश्व नेताओं को चेतावनी दी कि कोपेनहेगन में ऐसी किसी सहमति को मंज़ूरी नहीं दी जानी चाहिए जिससे कि क्योटो संधि की प्रासंगिकता पर आँच आए.
तीसरे सबक के रुप में उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को विकसित देशों के साथ बोझ साझा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि विकास पर विकासशील देशों का भी बराबरी का हक़ है.
मनमोहन सिंह ने कहा, "इस सम्मेलन का चाहे जो भी परिणाम निकले भारत ने अपने लिए कुछ लक्ष्य तय कर लिए हैं और वह इनका पालन करता रहेगा."
उन्होंने विश्व नेताओं को बताया कि वर्ष 2020 तक भारत अपने कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2005 की तुलना में 20 प्रतिशत तक की कटौती कर लेगा.
उन्होंने कहा कि भारत ने वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा से 20 हज़ार मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है और यह फ़ैसला किया है कि वर्ष 2020 तक ऊर्जा क्षमताओं में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी करेगा.
उनका कहना था कि भारत अगले कुछ वर्षों में अपने जंगलों में 60 लाख हेक्टेयर का इज़ाफ़ा करेगा.
प्रधानमंत्री सिंह ने विश्व नेताओं से अपील की है कि वे सुनिश्चित करें कि विकासशील देशों के साथ कोई अन्याय न हो
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